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मूंग की उन्नत तकनीक

छत्तीसगढ़ में मूंग ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम की कम समय में पकने वाली एक दलहनी फसल है। इसके दाने का प्रयोग मुख्य रूप से दाल के लिये किया जाता हैजिसमें 24-26% प्रोटीन,55-60% कार्बोहाइड्रेट एवं 1.3%वसा होता है। दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ो में गठाने पाई जाती है जो कि वायुमण्डलीय नत्रजन का मृदा में स्थिरीकरण (38-40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टयर) एवं फसल की खेत से कटाई उपरांत जड़ो एवं पत्तियो के रूप में प्रति हैक्टयर 1.5टन जैविक पदार्थ भूमि में छोड़ा जाता है जिससे भूमि में जैविक कार्बन का अनुरक्षण होता है एवंमृदा की उर्वराशक्ति बढाती है।  कृषक भाई उन्नत प्रजातियो एवं उत्पादन की उन्नत तकनीक को अपनाकर पैदावार को 8-10 क्विंटल प्रति हैक्टयर तक प्राप्त कर सकते है।

जलवायु-
मूंग के लिए नम एंव गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती वर्षा ऋतु में की जा सकती है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिए 25-32 °C ता पमान अनुकूल पाया गया हैं। मूंग के लिए 75-90 से.मी.वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रउपयुक्त पाये गये है। पकने के समय साफ मौसम तथा 60% आर्दता होना चाहिये। पकाव के समय अधिक वर्षा हानिप्रद होती है।
भूमि-
मूंग की खेती हेतु दोमट से बलुअर दोमट भूमियाँ जिनका पी. एच. 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम हैं। खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिये।

भूमि की तैयारी-

खरीफ की फसल हेतुएक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए एंव वर्षाप्रराम्भ होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरान्त खेत में पाटा चलाकर समतल करें। दीमक से बचाव के लिये क्लोरपायरीफॉस 1.5 % चूर्ण 20-25 कि.ग्रा/है. के मान से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिये।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिये रबी फसलों के कटने के तुरन्त बाद खेत की तुरन्त जुताई कर 4-5 दिन छोड कर पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनावे। इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है व बीजों से अच्छा अंकुरण मिलता हैं।

बुआई का समय -

खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिये। बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है इससे इसकी उपज प्रभावित होती है।

उन्नत किस्मो का चयन-

मँग के लिये 8 किलो नत्रजन 20 किलो स्फुर, 8 किलो पोटाश एवं 8 किलो गंधक प्रति एकड़ बोने के समय प्रयोग करना चाहिये।
मध्य प्रदेश लिये उन्नत जातियों का चयन निम्नलिखित जातियों का चुनाव उनकी विशेषताओं के आधार पर करना चाहिये।

क्र.

किस्म का

नाम

अवधि

 (दिन)

उपज (क्विं/हैक्ट)

प्रमुख विशेषताये

चित्र

1

टॉम्बे जवाहर मूंग-3
(टी.जे. एम -3)

जारी करने का वर्षः-2006
केन्द्र का नामः-जवहार लाल नेहरू कृषि विश्व विधालय जबलपुर

60-7010-12
  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो के लिए उपयुक्त

  • फलियाँ गुच्छो में लगती है

  • एक फली मे 8-11 दाने

  • 100 दानो का बजन 3.4-4.4 ग्राम

  • पीला मोजेक एवं पाउडरी मिल्डयू रोग हेतु प्रतिरोधक

2जवाहर मूंग -721
जारी करने का वर्षः 1996

केन्द्र का नामःकृषि महाविधालय इन्दोर

70-75

12-14

<
  • पूरे मध्यप्रदेश में ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त

  • पौधे की उंचाई 53-65 सेमी

  • 3-5 फलियाँ एक गुच्छे मे

  • एक फली में 10-12 दाने

  • पीला मोजेक एवं पाउडरीमिल्डयू रोग सहनशील

3के - 851
जारी करने का वर्षः 1982
केन्द्र का नामः- चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौघोगिकी विश्व विघालय, कानपुर
60-65
(ग्रीष्म)
70-80
(खरीफ)

8-10

10-12

  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त

  • पौधे मध्यम आकार के (60-65 सेमी.)

  • एक पौधो मे 50-60 फलियाँ

  • एक फली मे 10-12 दाने

  • दाना चमकीला हरा एवं बडा

  • 100 दानो का बजन 4.0-4.5 ग्राम

4

एच.यू.एम. 1 (हम -1)
जारी करने का वर्षः 1999
केन्द्र का नामः- बनारस हिंदू विश्वविधालय, वाराणसी

65-708-9
  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त

  • पौधे मध्यम आकार के (60-70 सेमी.)

  • एक पौधे मे 40-55 फलियाँ

  • एक फली मे 8-12 दाने

  • पीला मोजेक एवं पर्णदाग रोग के प्रति सहनशील

5

पी.डी.एम - 11
जारी करने का वर्षः 1987
केन्द्रः-भारतीय दलहन अनुसंधान केन्द्र, कानपुर

65-7510-12
  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त
  • पौधे मध्यम आकार के (55-65 सेमी.)
  • मुख्य शाखये मध्यम (3-4)
  • परिपक्व फली का आकार छोटा
  • पीला मोजेक रोग प्रतिरोधी
6

पूसा विशाल
जारी करने का वर्षः 2000
केन्द्रः- भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र- नई दिल्ली

60-6512-14
  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो के लिये उपयुक्त
  • पौधे मध्यम आकार के (55-70 सेमी.)
  • फली का साइज अधिक (9.5-10.5 सेमी.)
  • दाना मध्यम चमकीला हरा
  • पीला मोजेक रोग सहनशील
बीज दर व बीज उपचार-

खरीफ में कतार विधि से बुआई हेतु मूंग 20 कि.ग्रा./है. पर्याप्त होता है। बसंत अथवा ग्रीष्मकालीन बुआई हेतु 25-30 कि.ग्रा/है. बीज की आवश्यकता पड़ती है। बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम + केप्टान (1 + 2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। तत्पश्चात इस उपचारित बीज को विशेष राईजोबियम कल्चर की 5 ग्राम. मात्रा प्रति किलो बीज की दर से परिश¨धित कर बोनी करें।

बुआई का तरीका -

वर्षा के मौसम में इन फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्तकरने हेतु हल के पीछे पंक्तियोंअथवा कतारों में बुआई करना उपयुक्त रहता है। खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 से.मी. तथा बसंत (ग्रीष्म) के लिये20-22.5 से.मी. रखी जाती है। पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से.मी. रखते हुये 4 से.मी. की गहराई परबोना चाहिये।

खाद एवं उर्वरक -

खाद एवं उर्वरक की मात्रा किलोग्राम /हे. होनी चाहिये।

 नाइट्रोजनफास्फोरसपोटाशगंधकजिंक
बीज उत्पादन2040202520

नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश उर्वरको की पूरी मात्रा बुबाई के समय 5-10 सेमी. गहरी कूड़ में आधार खाद के रूप में दें।

सिचाई एवं जल निकास -

प्रायः वर्षा ऋतु में मूंग की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पडती है फिर भी इस मौसम में एक वर्षा के बाद दूसरी वर्षा होने के बीच लम्बा अन्तराल होने पर अथवा नमी की कमी होने पर फलियाँ बनते समय एक हल्की सिंचाई आवश्यक होती है। बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिये। वर्षा के मौसम में अधिक वर्षा होने पर अथवा खेत में पानी का भराव होने पर फालतू पानी को खेत से निकालते रहना चाहिये, जिससे मृदा में वायु संचार बना रहता है।

खरपतवार नियंत्रण -

मूंग की फसल में नींदा नियंत्रण सही समय पर नही करने सेफसल की उपज में 40-60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। खरीफ मौसम में फसलों में सकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसेः सवा (इकाईनाक्लोक्लोवा कोलाकनम/ क्रुसगेली) दूब घास (साइनोडॉन डेक्टाइलोन) एवं चैडी पत्ती वाले पत्थरचटा (ट्रायन्थिमा मोनोगायना), कनकवा (कोमेलिना वेंघालेंसिस), महकुआ (एजीरेटम कोनिज्वाडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अर्जेसिया), हजारदाना (फाइलेन्थस निरूरी), एवं लहसुआ (डाइजेरा आरवेंसिस) तथा मोथा (साइप्रस रोटन्डस, साइप्रस इरिया) आदि वर्ग के खरपतवार बहुतायत निकलते है। फसल व खरपतवार की प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवस्था मूंग में प्रथम 30 से 35 दिनों तक रहती है। इसलिये प्रथम निदाई-गुडाई 15-20 दिनों पर तथा द्वितीय 35-40 दिन पर करना चाहियें। कतारों में ब¨ई गई फसल में व्हील ह¨ नामक यंत्र द्वारा यह कार्य आसानी से किया जा सकता है।चूंकि वर्षा के मौसम में लगातार वर्षा होने पर निदाई गुडाई हेतु समय नहीं मिल पाता साथ ही साथ श्रमिक अधिक लगने से फसल की लागत बढ जाती है। इन परिस्थितियों में नींदा नियंत्रण के लिये निम्न नींदानाशक रसायन का छिड़काव करने से भी खरपतवार का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।खरपतवार नाशक दवाओ के छिडकाव के लिये हमेशा फ्लैट फेन नोजल का ही उपयोग करें।

शाकनाशी रसायन का नाम

मात्रा
(ग्रा. सक्रिय पदार्थ/हे.)

प्रयोग का समय

नियंत्रित खरपतवार

पेन्डिमिथिलीन
(स्टाम्प एक्स्ट्रा)
700 ग्रा.बुवाई के 0-3 दिन तकघासकुल एवं कुछ चैडी पत्ती वाले खरपतवार
इमेजेथापायर
(परस्यूट)
100 ग्रा.बुवाई के 20 दिन बादघासकुल, मोथाकुल एवं चैडी पत्ती वाले खरपतवार
क्यूजालोफाप ईथाइल (टरगासुपर)40-50 ग्रा.बुबाई के 15-20 दिन बादघासकुल के खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण
कीट नियंत्रण-

मूंग की फसल में प्रमुख रूप से फली भ्रंग, हरा फुदका, माहू, तथा कम्बल कीट का प्रकोप होता है। पत्ती भक्षक कीटों के नियंत्रण हेतु क्विनालफास की 1.5 लीटर तथा हरा फुदका, माहू एवं सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीटो के लिए डायमिथोएट 1000 मि.ली. प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. प्रति 600 लीटर पानी में 125 मि.ली. दवा के हिसाब से प्रति हेक्टेयरछिड़काव करना लाभप्रद रहता है।

जब फलियाँ काली पड़कर पकने लगे तब तुड़ाई करना चाहिये। इन फलियों को सुखाकर बैलों के दावन से या लकड़ी द्वारा पीटकर गहाई करें।

रोग नियंत्रण -

मूंग में अधिकतर पीत रोग, पर्णदाग तथा भभूतिया रोग प्रमुखतया आते है। इन रोगों की रोकथाम हेतु रोग निरोधक किस्में हम 1, पंत मूंग 1, पंतमूंग 2, टी.जे.एम -3, जे.एम. 721 आदि का उपयोग करना चाहिये। पीत रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है इसके नियंत्रण हेतु मेटासिस्टॉक्स 25 ईसी 750 से 1000 मि.ली. का 600लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टर छिड़काव 2 बार 15 दिन के अंतराल पर करे। फफूंद जनित पर्णदाग (अल्टरनेरिया/सरकोस्पोरा/माइरोथीसियस) रोगों के नियंत्रण हेतु डायइथेन एम. 45, 2.5 ग्रा/लीटर या कार्वान्डाजिम डायइथेन एम. 45 की मिश्रित दवा बना कर 2.0 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर वर्षा के दिनों को छोड़ कर खुले मौसम में छिड़काव करें। आवश्यकतानुरूप छिड़काव 12-15 दिनों बाद पुनः करें।

मूंग के प्रमुख रोग एवं नियंन्त्रण

1

पीला चितकबरी (मोजेक) रोग

  • रोग प्रतिरोधी अथवा सहनशील किस्मो जैसे टी.जे.एम. -3, के -851, पन्त मूंग -2, पूसा विशाल, एच.यू.एम. -1 का चयन करे।

  • प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजो का प्रयोग करे।

  • बीज की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कतारों में करें प्रारम्भिक अवस्था में रोग ग्रसित पौधों को उखाडकर नष्ट करें।

  • यह रोग विषाणु जनित है जिसका वाहक सफेद मक्खी कीट है जिसे नियंत्रित करने के लिये ट्रायजोफॉ 40 ईसी, 2 मिली प्रति लीटर अथवा थायोमेथोक्साम 25 डब्लू. जी. 2 ग्राम/ली. या डायमेथोएट 30 ईसी, 1 मिली./ली. पानी में घोल बनाकर 2 या 3 बार 10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार छिडकाव करे।

2

सर्कोस्पोरा पर्णदाग

  • रोग रहित स्वस्थ बीजो का प्रयोग करें।

  • खेत में पौधे घने नही होने चाहिये पौधो का 10 सेमी. की दूरी के हिसाब से विरलीकरण करे।

  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. की 2.5 ग्राम लीटर या कार्बेन्डाइजिम 50 डब्लू. पी. की 1 ग्राम/ली. दवा का घोल बनाकर 2-3 बार छिडकाव करे।

3

एन्थ्राक्नोज

  • प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजो का चयन करे।

  • फफूद नाशक दवा जैसे मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. 2.5 ग्राम/ली. या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू. पी. की 1ग्राम/ली. का छिडकाव बुबाई के 40 एवं 55 दिन पश्चात करे।

4

चारकोल विगलन

  • बीजापचार कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू जी. 1 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से करे।

  • 2-3 वर्ष का फसल चक्र अपनाये तथा फसल चक्र में ज्वार, बाजरा फसलो को सम्मिलित करें।

5

भभूतिया (पावडरी मिल्डयू) रोग

  • रोग प्रतिरोधी किस्मो का चयन करे।

  • समय से बुबाई करे।

  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर कैराथन या सल्फर पाउडर 2.5 ग्राम/ली. पानी की दर से छिडकाव करे।

फसल पद्धति-

मूंग कम अवधि में तैयार होने वाली दलहनी फसल हैं जिसे फसल चक्र में सम्मलित करना लाभदायक रहता है। मक्का-आलू-गेहूँ -मूंग(बसंत),ज्वार+ मूंग -गेहूँ , अरहर + मूंग -गेहूँ , मक्का +मूंग -गेहूँ , मूंग -गेहूँ । अरहर की दो कतारों के बीच मूंग की दो कतारे अन्तः फसल के रूप में बोना चाहिये। गन्ने के साथ भी इनकी अन्तरवर्तीय खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।

कटाई एंव गहाई-

मूंग की फसल क्रमशः 65-70दिन में पक जाती है। अर्थात जुलाई में बोई गई फसल सितम्बर तथा अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक कट जाती है। फरवरी-मार्च में बोई गई फसल मई में तैयार हो जाती है। फलियाँ पक कर हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती है। पौधें में फलियाँ असमान रूप से पकती हैं यदि पौधे की सभी फलियों के पकने की प्रतीक्षा की जाये तो ज्यादा पकी हुई फलियाँ चटकने लगती है अतः फलियों की तुड़ाई हरे रंग से काला रंग होते ही 2-3 बार में करें एंव बाद में फसल को पौधें के साथ काट लें। अपरिपक्वास्था में फलियों की कटाई करने से दानों की उपज एवं गुणवत्ता दोनो खराब हो जाते हैं। हॅंसिए से काटकर खेत में एक दिन सुखाने के उपरान्त खलियान में लाकर सुखाते है। सुखाने के उपरान्त डडें से पीट कर या बैंलो को चलाकर दाना अलग कर लेते है वर्तमान में मूंग एवं उड़द की थ्रेसिंग हेतु थ्रेसर का उपयोग कर गहाई कार्य किया जा सकता है।

उपज एंव भड़ारण-
मूंग की खेती उन्नत तरीके से करने पर 8-10 क्विंटल/है. औसत उपज प्राप्त की जा सकती है। मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल/है. उपज प्राप्त की जा सकती है। भण्ड़ारण करने से पूर्व दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाने के उपरान्त ही जब उसमें नमी की मात्रा 8-10% रहे तभी वह भण्डारण के योग्य रहती है।
मूंग का अधिक उत्पादन लेने के लिए आवश्यक बाते -
  • श्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का उपयोग करें।

  • सही समय पर बुवाई करें, देर से बुवाई करने पर उपज कम हो जाती है।

  • किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार करें।

  • बीजोपचार अवश्य करें जिससे पौधों को बीज एवं मृदा जनित बीमारियों से प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित होने से बचाया जा सके।

  • मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करे जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है जो टिकाऊ उत्पादन के लिए जरूरी है।

  • खरीफ मोसम में मेड नाली पध्दति से बुबाई करें।

  • समय पर खरपतवारों नियंत्रण एवं पौध संरक्षण करें जिससे रोग एवं बीमारियो का समय पर नियंत्रण किया जा सके।


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सावधान-धान में लगे भूरा माहो तो ये करे उपाय हमारे देश में धान की खेती की जाने वाले लगभग सभी भू-भागों में भूरा माहू (होमोप्टेरा डेल्फासिडै) धान का एक प्रमुख नाशककीट है| हाल में पूरे एशिया में इस कीट का प्रकोप गंभीर रूप से बढ़ा है, जिससे धान की फसल में भारी नुकसान हुआ है| ये कीट तापमान एवं नमी की एक विस्तृत सीमा को सहन कर सकते हैं, प्रतिकूल पर्यावरण में तेजी से बढ़ सकते हैं, ज्यादा आक्रमक कीटों की उत्पती होना कीटनाशक प्रतिरोधी कीटों में वृद्धि होना, बड़े पंखों वाले कीटों का आविर्भाव तथा लंबी दूरी तय कर पाने के कारण इनका प्रकोप बढ़ रहा है। भूरा माहू के कम प्रकोप से 10 प्रतिशत तक अनाज उपज में हानि होती है।जबकि भयंकर प्रकोप के कारण 40 प्रतिशत तक उपज में हानि होती है।खड़ी फसल में कभी-कभी अनाज का 100 प्रतिशत नुकसान हो जाता है। प्रति रोधी किस्मों और इस किट से संबंधित आधुनिक कृषिगत क्रियाओं और कीटनाशकों के प्रयोग से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है । आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक बताएंगे कि भूरा माहू का प्रबंधन किस प्रकार किया जाए। लक्षण एवं पहचान:- ■ यह कीट भूर...

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट

समसामयिक सलाह:- भारी बारिश के बाद हुई (बैटीरियल लीफ ब्लाइट ) से धान की पत्तियां पीली हो गई । ऐसे करे उपचार नही तो फसल हो जाएगी चौपट छत्त्तीसगढ़ राज्य में विगत दिनों में लगातार तेज हवाओं के साथ काफी वर्षा हुई।जिसके कारण धान के खेतों में धान की पत्तियां फट गई और पत्ती के ऊपरी सिरे पीले हो गए। जो कि बैटीरियल लीफ ब्लाइट नामक रोग के लक्षण है। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर बताएंगे कि ऐसे लक्षण दिखने पर किस प्रकार इस रोग का प्रबंधन करे। जीवाणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट): रोग के लक्षण ■ इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। ■ इसका प्रसार पत्ती की मुख्य नस की ओर तथा निचले हिस्से की ओर तेजी से होने लगता है व पूरी पत्ती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। ■ रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कंसे कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। रोग का कारण यह रोग जेन्थोमोनास...

वैज्ञानिक सलाह- धान की खेती में खरपतवारों का रसायनिक नियंत्रण

धान की खेती में खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है। अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का खरपतवार नाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। डॉ गजेंद्र चन्...

समसामयिक सलाह-" गर्मी व बढ़ती उमस" के साथ बढ़ रहा है धान की फसल में भूरा माहो का प्रकोप,जल्द अपनाए प्रबंधन के ये उपाय

  धान फसल को भूरा माहो से बचाने सलाह सामान्यतः कुछ किसानों के खेतों में भूरा माहों खासकर मध्यम से लम्बी अवधि की धान में दिख रहे है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा माहो कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र चंद्राकर ने किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करें। भूरा माहो लगने के लक्षण ■ गोल काढ़ी होने पर होता है भूरा माहो का प्रकोप ■ खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। ■ अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, ■ घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं । ■तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है। क्या ह...

सावधान -धान में (फूल बालियां) आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें।

  धान में फूल बालियां आते समय किसान भाई यह गलतियां ना करें। प्रायः देखा गया है कि किसान भाई अपनी फसल को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कीटनाशक व कई प्रकार के फंगीसाइड का उपयोग करते रहते है। उल्लेखनीय यह है कि हर रसायनिक दवा के छिड़काव का एक निर्धारित समय होता है इसे हमेशा किसान भइयों को ध्यान में रखना चाहिए। आज की कड़ी में डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बताएंगे कि धान के पुष्पन अवस्था अर्थात फूल और बाली आने के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। सुबह के समय किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसलों पर नहीं करें कारण क्योंकि सुबह धान में फूल बनते हैं (Fertilization Activity) फूल बनाने की प्रक्रिया धान में 5 से 7 दिनों तक चलता है। स्प्रे करने से क्या नुकसान है। ■Fertilization और फूल बनते समय दाना का मुंह खुला रहता है जिससे स्प्रे के वजह से प्रेशर दानों पर पड़ता है वह दाना काला हो सकता है या बीज परिपक्व नहीं हो पाता इसीलिए फूल आने के 1 सप्ताह तक किसी भी तरह का स्प्रे धान की फसल पर ना करें ■ फसल प...