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Showing posts from January, 2021

समसामयिक सलाह-फरवरी माह में इन कृषि एवं बागवानी कार्यों को करें, होगी बेहतर उपज

  समसामयिक सलाह- फरवरी माह में इन कृषि एवं बागवानी कार्यों को करें, होगी बेहतर उपज कृषि कार्य करने के लिए किसानों के पास ये जानकारी होनी बहुत जरुरी है कि वो किस माह में कौन-सा कृषि कार्य करें. क्योंकि मौसम कृषि कार्य को बहुत प्रभावित करता है. इसलिए तो अलग- अलग सीजन में अलग फसलों की खेती की जाती है ताकि फसल की अच्छी पैदावार ली जा सकें. ऐसे में आइये जानते है कि फरवरी माह में किसान कौन-सा कृषि कार्य करें- गेहूं बुवाई के समय के हिसाब से गेहूं में दूसरी सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई 60-65 दिन की अवस्था में कर दें. चौथी सिंचाई बुवाई के 80-85 दिन बाद बाली निकलने के समय करें। ■गेहूँ के खेत में चूहों का प्रकोप होने पर जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्यूमिनियम फास्फाइड की टिकिया का प्रयोग करें. जौ खेत में यदि कंडुआ रोग से ग्रस्त बाली दिखाई दे तो उसे निकाल कर जला दें. चना चने की फसल को फली छेदक कीट से बचाव के लिए फली बनना शुरू होते ही बैसिलस थूरिनजेन्सिस (बी.टी.) 1.0 किग्रा अथवा फेनवैलरेट 20 प्रतिशत ई.सी.1.0 लीटर अथवा क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई.सी. 2.0 लीटर प्रति हेक्टेयर 500-600 ल

जैविक खेती:- "लो कास्ट तकनीक" से वर्मी कम्पोस्ट का उपादन कैसे करे?

जैविक खेती:- "लो कास्ट तकनीक" से वर्मी कम्पोस्ट का उपादन कैसे करे? वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन की बेड विधि: ■ सर्वप्रथम छायादार जगह पर जमीन के ऊपर 2-3 फुट की चौड़ाई और अपनी आवश्यकता के अनुरूप लम्बाई के बेड बनाये जाते हैं। जिसमे पॉलीथिन की सीठ बिछाई जाती है। ■इन बेड़ों का निर्माण गाय-भैंस के गोबर, जानवरों के नीचे बिछाए गए घासफूस-खरपतवार के अवशेष आदि से किया जाता है। ■ढेर की ऊंचाई लगभग लगभग 01 फुट तक रखी जाती है। बेड के ऊपर पुवाल, पैरा या घास डालकर ढक दिया जाता है। ■ एक बेड का निर्माण हो जाने पर उसके बगल में दूसरे उसके बाद तीसरे बेड बनाते हुए जरूरत के अनुसार कई बेड बनाये जा सकते हैं। ■बेड में अब  केंचुए डालने होते हैं जो कि उस बेड में उपस्थित गोबर और जैव-भार को खाद में परिवर्तित कर देते हैं।  ■इसके बाद पहले बेड से वर्मी कम्पोस्ट अलग करके छानकर भंडारित कर लिया जाता है तथा पुनः इस पर गोबर आदि का ढेर लगाकर बेड बना लेते  है। यह विधि काफी सरल है जिसका उपयोग गौठनों में कार्यरत महिला समूह आसानी से कर सकते है एवं वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण कर सकती है गुणवत्ता में किसी भी प्रकार की कोई कमी नही

औषधि ज्ञान:-जाने क्या है लता करंज

लता करंज लता करंज को हमारे मालवांचल में घटार/गटारन कहते है... बचपन मे स्कूली दिनों में इसके बीजो को शीलपट्टी पर घिसकर दूसरे के पैर या जंघा पर चिपकाते थे,जब अधिकतर नेकर ही पहनते थे...यह घिसने पर बहुत गर्म हो जाती थी,जब चिपकाते तो उसकी दर्द भरी आवाज सबको आंनदित कर देती थी...बचपन के साथ यह पेड़ भी हमारे गांव से गायब हो चुका हैं....जैवविविधता की दृष्टि से पिछले वर्ष इसके कुछ पौधे लगाए हैं जो अब चेत गए है..। पिछली जंगल दर्शन यात्रा में यह पेड़ हमको झाबुआ अंचल में देखने को मिला,वैसे लता करन्ज पूरे भारतवर्ष में पाए जाते हैं,पर अब इसकी उपलब्धता कम होने लगी हैं....यह एक झाड़ीदार लता होती हैं जो अन्य पेडों की सहायता लेकर 25 से 30 फीट तक लंबे फेल जाते हैं..लता करन्ज पर बारिश के महीनों में फूल आते हैं जो गुच्छों में लगते हैं तथा फूलों रंग पीला होता है एवं इस पेड़ के फल फलियों के रूप में करंज की फलियों के समान होते हैं किन्तु आकर में करंज के फलों (फलियों) से बड़े होते हैं.... फलियों की बाहरी सतह पर तीव्र काँटे होते हैं.... फलियों के सूख जाने पर इन फलियों से 1से 2 बीज निकलते हैं जो स्लेटी, भूरे रंग के

जैविक खेती:- ऐसे बनाये जैविक तरल खाद जो DAP से 5 गुणा ज्यादा गुणवत्ता वाला है।

   जैविक खेती:- ऐसे बनाये जैविक तरल खाद जो DAP से 5 गुणा ज्यादा गुणवत्ता वाला है। अधिकांश मानवीय बीमारियों का कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कृषि में उपयोग हो रहे रसायन भी हैं। इनमें मुख्य रूप से मानव द्वारा उपयोग की जाने वाली विषाक्त सब्जियां,अनाज एवं फल हैं जिनकी सुरक्षा हेतु अंधाधुंध रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक का उपयोग किया जाता है। इन उर्वरक व कीटनाशकों के प्रयोग से अत्यधिक प्रयोग से इनके प्रति कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और कुछ प्रजातियों में तो प्रतिरोधक क्षमता विकसित भी हो चुकी है। इसके अलावा रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक अत्यधिक महगे होने के कारण किसानों को इन पर अत्यधिक खर्च करना पड़ता है। उर्वरक व कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से फसलों, सब्जियों व फलों की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इन वस्तुस्थिति के फलस्वरूप वैज्ञानिकों का ध्यान प्राकतिक एवं जैविक उर्वरक व कीटनाशकों की ओर गया है जोन केवल सस्ते हैं बल्कि जिनके उपयोग से तैयार होने वाली फसल के किसी प्रकार के रासायनिक दुष्प्रभाव भी नहीं रहते हैं। आज की कड़ी में हम एक ऐसे जैविक तरल खाद बनाने की विधि के बारे में

कृषि सलाह :-आम में गमोसिस एवम् अचानक पेड़ के सूखने वाले रोग का प्रबन्धन कैसे करें ?

 कृषि सलाह- आम में गमोसिस एवम् अचानक पेड़ के सूखने वाले रोग का प्रबन्धन कैसे करें ? डॉ एसके सिंह  प्रोफेसर (पादप रोग)  प्रधान अन्वेषक , अखिल भारतीय फल अनुसन्धान परियोजना  एवं सह निदेशक अनुसन्धान डा. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय ,  पूसा , समस्तीपुर, बिहार   आम में गामोसिस एवम् पेड़ के अचानक सुख जाने से बचाव के लिए आवश्यक है कि निम्न लिखित उपाय किए जाने चाहिए ■रोको एम @3ग्राम /लीटर पानी के घोल से मिट्टी को भीगा दे।10वर्ष के वयस्क पेड़ के लिए लगभग 30 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता पड़ेगी।10दिन के बाद पुनः ड्रेंचिंग करें। ■पहला छिड़काव साफ @2ग्राम/लीटर के दर से करें एवम् 10दिन के बाद ब्लिटॉक्स-50@3ग्राम /लीटर के दर से करे। ■वयस्क (10वर्ष या उसके ऊपर के पेड़ के लिए) आम के पेड़ में 1 किग्रा नत्रजन,500 ग्राम फास्फोरस एवम् 800 ग्राम पोटाश पेड़ के चारों तरफ़ 2 मीटर दूर रिंग बना कर देना चाहिए। ■पेड़ के चारो तरफ ,जमीन की सतह से 5-5.30 फीट की ऊंचाई तक बोर्डों पेस्ट से पुताई करनी चाहिए। ■प्रश्न यह उठता है कि बोर्डों पेस्ट बनाते कैसे है।यदि बोर्डों पेस्ट से साल में दो बार प्रथम जुलाई- अ

जैविक खेती:-मिर्च की फसल में रोग का जैविक प्रबंधन

मिर्च की फसल में रोग का जैविक प्रबंधन हमारे देश में मिर्च की फसल प्रमुख नगदी फसलों में अपना स्थान रखती है| मिर्च के विशिष्ट गुणों की वजह से मसाला परिवार में इसका महत्वपूर्ण स्थान है| हरी और लाल दोनों अवस्था में मिर्च भोजन को स्वादिष्ट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| मिर्च का तीखापन केप्सेसिन की मात्रा पर निर्भर करता है| स्वास्थ्य की दृष्टि से मिर्च में विटामिन ए व सी तथा कुछ खनिज लवण पाये जाते है| जो मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है| लेकिन इस फसल को अनेक रोग प्रभावित करते है| मिर्च के प्रमुख रोग शीर्ष मरण रोग (डाइ बैक) एवं फल सड़न-  इस मिर्च की फसल के प्रमुख रोग से पौधों का ऊपरी भाग सूखना प्रारम्भ होता है तथा नीचे तक सूखता जाता है| प्रारम्भिक अवस्था में टहनियाँ गीली होती है व उस पर रोएँदार कवर दिखाई देती हैं| रोगग्रसित पौधों के फल सड़ने लगते हैं| इस रोग के लक्षण पके फलों पर मुख्यतः प्रकट होते हैं| फल की त्वचा पर एक छोटा गोलाकार काला धब्बा प्रकट होता है, जिससे फलों का आकार बिगड़ जाता है व फल सड़ जाते हैं| पत्ती झुलसा रोग-  यह मिर्च की फसल के प्रमुख रोग में से एक अत्यधिक वर्षा, उच

कृषि सलाह:-कम समय, कम जगह और अधिक उपज-इंटरक्रॉपिंग के लाभ

  कम समय, कम जगह और अधिक उपज- इंटरक्रॉपिंग  के लाभ क्या है?" इंटरक्रॉपिंग" एक ही भूमि पर एक साथ दो या दो से अधिक फसलें उगाना इंटरक्रॉपिंग है।आप उच्च उपज और उपज स्थिरता देने के लिए एक साथ एक ही खेत में फसलें उगा सकते है। हम उन किसान भाई बहनो की मदद खास तौर पर करना चाहते हैं जिनके पास जमीं का आभाव है। फसल सलाह आपको बताना चाहता है की आने वाली ज़ैद मौसम में आप कम समय, कम लागत व् कम जगह में ही अधिक उत्पादन कर सकते हैं। हम आपको बताएंगे कि उनकी फसलें बहुत सी अंतर फसलें और मुख्य फसलें हैं जिन्हें आप एक ही खेत में उगा सकते हैं। किन किन फसलों की कर सकते है इंटरक्रॉपिंग ■आप हल्दी को मिर्च के साथ या लेमनग्रास के साथ उगा सकते हैं। ■ आप हल्दी को प्याज और भिंडी के साथ भी उगा सकते हैं। ■ आप सूरजमुखी, मिर्च के साथ मूली, गणना के साथ सोयाबीन / गोभी / सूरजमुखी, खीरा और पत्ता गोभी को भी आप एक ही खेत में ऊगा सकते हैं, ■गोभी के साथ ककड़ी ,, मिर्च और लेमनग्रास के साथ धनिया , ग्रीनग्राम / मक्का के साथ चना या केले की फसल भी कर सकते हैं। ■आप पपीता और गाजर की फसल भी एक साथ कर सकते हैं। ऐसा करने से आपको न

पशुपालन: अब पशु भी खाएंगे चॉकलेट और देंगे ज़्यादा दूध

पशुपालन: अब पशु भी खाएंगे चॉकलेट और देंगे ज़्यादा दूध आज के समय में बच्चों से लेकर बड़े तक चॉकलेट (chocolate) खाने के शौकीन हैं. वहीं पशुओं के लिए भी एक खास तरह की चॉकलेट लाई गई है. हाल ही में यूरिया मोलासिस मिनिरल ब्लॉक (molasses mineral block) नाम से एक चॉकलेट बनाई गई है जोकि पशुपालकों के लिए एक वरदान साबित हो रही है. आईवीआरआई के मुताबिक इस पूरी तकनीक को विकसित करने में संस्था के वैज्ञानिकों को 4 साल का समय लगा. Molasses mineral block chocolate के सेवन से पशुओं में कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं जो उनके सेहत के लिए बहुत लाभकारी हैं. इसमें भरपूर मात्रा में न्यूट्रीशियन तत्व पाया जाता है। किसान भी बना सकते हैं चॉकलेट पशुओं की इस खास चॉकलेट को बनाने के लिए एक मशीन भी बनाई गई है. चॉकलेट बनाने के लिए आईवीआरआई (IVRI ) ट्रेनिंग भी दे रहा है. इससे पशुपालक घर बैठे रोजगार भी पा सकते हैं. अगर किसान भी इस चॉकलेट को बनाना चाहते हैं तो वे सीतापुर जिले के कृषि विज्ञान केंद्र-2 में संपर्क कर इसकी पूरी जानकारी और विधि प्राप्त कर सकते हैं। पशुओं के लिए इस तरह से फायदेमंद है चॉकलेट पशुओं को इस चॉक

समसामयिक सलाह:- दिनांक १६-३१ जनवरी, २०२१तक करे ये कृषि कार्य

   कृषकों हेतु सलाह : दिनांक १६-३१ जनवरी, २०२१ ■पाला पड़ने की संभावना होने पर पाले से बचाव के लिए फसलों में हल्की सिंचाई करें, अथवा थायो यूरिया की ५०० ग्राम मात्रा का १००० लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें अथवा : ८ से १० किलोग्राम सल्फर पाउडर प्रति एकड़ का भुरकाव करें अथवा घुलनषील सल्फर ३ ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर अथवा ०.१ प्रतिषत गंधक अम्ल का छिड़काव करें। ■देर से बुवाई की गई फसल में सिंचाई के साथ एक-तिहाई नत्रजन (३३ किलोग्राम/हेक्टेयर) अर्थात यूरिया (७०-७२ किलोग्राम/हेक्टेयर) सिंचाई के पूर्व भुरककर दे। ■अगेती बुवाई वाली किस्मों में और सिंचाई न करें, पूर्ण सिंचित समय से बुवाई वाली किस्मों में २०-२० दिन के अन्तराल पर ४ सिंचाई करें।आवष्यकता से अधिक सिंचाई करने पर फसल गिर सकती है, दानों में दूधिया धब्बे आ जाते हैं तथा उपज कम हो जाती है। • बालियाँ निकलते समय फव्वारा विधि से सिंचाई न करें अन्यथा फूल खिर जाते हैं, दानों का मुंह काला पड़ जाता है व करनाल बंट तथा कंडुवा व्याधि के प्रकोप का डर रहता है। • षीघ्र एवं समय से बोई गई फसलों में उगे हुए खरपतवारों को जड़ सहित उखाडकर जानवर

कृषि सलाह-किस समय कितना नाइट्रोजन देना है गेहूं की फसल को बताएगा "पत्ता रंग चार्ट (एल सी सी) "

  कृषि सलाह-किस समय कितना नाइट्रोजन देना है गेहूं की फसल को बताएगा "पत्ता रंग चार्ट (एल सी सी) " मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जैविक खाद का प्रयोग अति आवश्यक है। परंतु जरूरत के अनुसार नाइट्रोजन खाद के इस्तेमाल के लिए पी ए यू एल सी सी अपनाना चाहिए जिससे किसान भाइयों को यह ज्ञात होगा कि गेँहू की फसल में कब कितने समय कितना नाइट्रोजन खाद (यूरिया) का प्रयोग करना चाहिए। आज की कड़ी में हम जानेंगे कि आखिर क्या है ये पत्ता रंग चार्ट (एल सी सी) और कैसे इसका प्रयोग करना है। पत्ता रंग चार्ट (एल सी सी) की उपयोग विधि चित्र में देखकर आप जान गए होंगे कि यह एक प्लास्टिक की सीट में 6 कलर के पत्तियों के शेड बने होते है जो कि पैरामीटर के हिसाब से 3 से 6 के बीच होते है। पत्तियों के रंग से पत्ता रंग चार्ट का रंग मिलाकर पैरामीटर में नम्बर चेक कर लें। नम्बर की सहायता से आप नीचे लिखे अनुसंशा के आधार पर नाइट्रोजन (यूरिया)का प्रयोग करे। गेहुँ में पी ए यू एल सी सी की सलाह ■ मध्यम उपजाऊ मिट्टी में बुआई के समय 55 कि.ग्रा. डी ए पि प्रति एकड़ डालें। बुआई के समय यूरिया की ज़रूरत नहीं। ■ पहली सिंचाई के सा

पोई भाजी: सबसे फायदेमंद साग जिसके बारे में बेहद कम लोग को जानकारी है!

  पोई  भाजी: सबसे फायदेमंद साग जिसके  बारे में बेहद कम लोग को जानकारी है! -------------------++++++++++------------------------------- आमतौर पर जब साग की बात आती है तो हमारे ज़ेहन में पालक का नाम आता है।ज्यादातर लोगो को पता है कि पालक में आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती है जो  इंसानी स्वास्थ्य के लिए श्रेस्कर  है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पोई साग में पालक अपेक्षा कई गुना ज्यादा है आयरन।इस साग का उपयोग बेहद कम है क्योंकि लोग जानते नहीं इसके बारे में। आइए इस पोस्ट में इस बहुमूल्य साग की जानकारी जन-जन तक पहुंचाते हैं।  पोई एक सदाबहार बहुवर्षीय लता है।इसकी पत्तियाँ मोटी, मांसल तथा हरी होतीं हैं जिनका शाक-सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से उगती हैै तथा वृक्षों और झाड़ियोंं का सहारा लेकर ऊपर चढ जाती है। इसके फल मकोय केे फलों जैसे दिखते हैैं जो पकने पर गाढ़े जामुनी रंग के हो जातेे है। इन पके फलों सेे गुलाबी आभाा लिये वाल रंग का रस निकलता है। पोई की लता और पत्तियाँ पोई के पत्तों का पालक के पत्तों जैसे पकौड़ा बनाने, साग बनाने में उपयोग होता है । इसे दाल में डालकर भी खाया जा

उद्यानिकी:- प्याज की फसल में उर्वरक का प्रबंधन कैसे करें?

  उद्यानिकी:- प्याज की फसल में उर्वरक का प्रबंधन कैसे करें। प्याज की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए उर्वरक प्रबंधन की जानकारी होना बेहद जरूरी है। संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से हम उच्च गुणवत्ता की एवं रोग रहित फसल प्राप्त कर सकेंगे। यदि आप प्याज की खेती कर रहे हैं तो यहां से उर्वरक प्रबंधन की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ■ गर्मियों में प्रति हेक्टेयर 15 टन अच्छी तरह से विघटित गोबर खाद मिट्टी में मिलाएं। यदि गोबर खाद, कम्पोस्ट खाद और अन्य फसल रोटेशन में ठीक तरह से ली जाती है , फसल को सूक्ष्म पोषक तत्व अछि तरह से उपलब्ध होते हैं। ■गोबर खाद डालने से बीस दिन पहले, इसमें 5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं और खाद को हल्का गीला कर दें। इससे ट्राइकोडर्मा में वृद्धि होती है। ■फसल के लिए दिए जाने वाले उर्वरक की मात्रा मिट्टी के प्रकार, रोपण के मौसम और उर्वरक के आवेदन की विधि पर निर्भर करती है। ■ प्रति हेक्टेयर 110 किग्रा ( N ), 40 किग्रा ( P ), 60 किग्रा ( K ) और 50 किग्रा सल्फर उर्वरक दे। इस नाइट्रोजन का 1/3 भाग, पूरा फास्फोरस, पोटाश और सल्फर को रोपण के

उपलब्धि:- श्री टी.एस. सिंहदेव ने किया कृषि आधारित मासिक पत्रिका "रोपण" का विमोचन , जिसके संपादक है एक "कृषि स्नातक"

  उपलब्धि:- श्री टी.एस. सिंहदेव ने किया कृषि आधारित मासिक पत्रिका "रोपण" का विमोचन , जिसके संपादक है एक "कृषि स्नातक" रोपण मासिक कृषि पत्रिका का विमोचन आज दिनांक 09/01/2021 को छ.ग. शासन के पंचायत एवं ग्रामीण विकास एवं स्वास्थ्य मंत्री श्री टी.एस. सिंहदेव के द्वारा किया गया।    रोपण कृषि पत्रिका के संपादक श्री अमित नामदेव कृषि के छात्र है जो कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर से कृषि अभियांत्रिकी में (एम . टेक) है। इन्होंने कोरोना काल मे कृषक हित मे कृषि वैज्ञानिकों की सलाह एवं नवीन तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिये मासिक पत्रिका  "रोपण" के बारे में सोचा जो आज सार्थक होता नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ के किसान ,कृषि छात्र,एवं कृषि आदान विक्रेता इस पत्रिका को काफी पसंद कर रहे है। रोपण कृषि पत्रिका के संपादक श्री अमित नामदेव द्वारा पत्रिका के विषय में बताया कि रोपण पत्रिका कृषि एवं ग्रामीण विकास पर आधारित है और इसका प्रकाशन राजनांदगांव से किया जा रहा है एवं इसका उद्देश्य किसानों एवं ग्रामीणों तक उन्नत कृषि तकनीक, कृषि संबंधति व्यवसाय जैसे पशुपालन, मत्स्य

जैविक खेती:-21 घरेलू नुस्खे जिसे किसान भाई आसानी से घर पर बनाकर जहरमुक्त खेती कर सकते है।

  जैविक खेती:-21 घरेलू नुस्खे जिसे किसान भाई आसानी से घर पर बनाकर जहरमुक्त खेती कर सकते है। अधिकांश मानवीय बीमारियों का कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कृषि में उपयोग हो रहे रसायन भी हैं। इनमें मुख्य रूपसे मानव द्वारा उपयोग की जाने वाली विषाक्त सब्जियां,अनाज एवं फल हैं जिनकी सुरक्षा हेतु अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इन कीटनाशकों के प्रयोग से अत्यधिक प्रयोग से इनके प्रति कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और कुछ प्रजातियों में तो प्रतिरोधक क्षमता विकसित भी हो चुकी है। इसके अलावा रासायनिक कीटनाशक अत्यधिक महगे होने के कारण किसानों को इन पर अत्यधिक खर्च करना पड़ता है। कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से फसलों, सब्जियों व फलों की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इन वस्तुस्थिति के फलस्वरूप वैज्ञानिकों का ध्यान प्राकतिक एवं जैविक कीटनाशकों एवं रोगनाशकों की ओर गया है जो न केवल सस्ते हैं बल्कि जिनके उपयोग से तैयार होने वाली फसल के किसी प्रकार के रासायनिक दुष्प्रभाव भी नहीं रहते हैं। आज की कड़ी में हम   विभिन्न रोगों व कीटों के नियंत्रण हेतु कुछ उपयोगी व सरल तरीकों क