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पपीता की व्यावसायिक खेती से प्रति हेक्टेयर होगी 10 लाख की आमदनी

पपीता की व्यावसायिक खेती से प्रति हेक्टेयर होगी 10 लाख की  आमदनी!
#आवाज_एक_पहल


 भारत में पपीता अब से लगभग 300वर्ष पूर्व में आया था। आरंभ में हम भारतवासियों ने इसे कतई भी पसंद नहीं किया। समय बीतने के पश्चात इसके क्वालिटी में सुधार हुआ और तब हमारे जायकों में इसको जगह मिलने लगी।

शीघ्र फलनेवाले फलों में पपीता अत्यंत उत्तम फल है। पेड़ लगाने के बाद वर्ष भर के अंदर ही यह फल देने लगता है। इसके पेड़ सुगमता से उगाए जा सकते हैं और थोड़े से क्षेत्र में फल के अन्य पेड़ों की अपेक्षा अधिक पेड़ लगते हैं।


इसके पेड़ कोमल होते हैं और पाले से मर जाते हैं। ऐसे स्थानों में जहाँ शीतकाल में पाला पड़ता हो, इसको नहीं लगाना चाहिए। यहाँ उपजाऊ, दुमट भूमि में अच्छा फलता है। ऐसे स्थानों में जहाँ पानी भरता हो, पपीता नहीं बढ़ता। पेड़ के तने के पास यदि पानी भरता है तो इसका तना गलने लगता है। पपीते के खेत में पानी का निकास अच्छा होना चाहिए। 

पपीते के पेड़ों में नर एवं मादा पेड़ अलग होते हैं। नर पेड़ों में केवल लंबे-लंबे फूल आते हैं। इनमें फल नहीं लगते। जब पेड़ फलने लगते हैं तो केवल १० प्रतिशत नर पेड़ों को छोड़कर अन्य सब नर पेड़ों को उखाड़ फेंकना चाहिए।


पपीते के पेड़ में तीन या चार साल तक ही अच्छे फल लगते हैं। आवश्यकतानुसार यदि तीसरे चौथे साल पपीते के दो पेड़ों के बीच बीच में नए पेड़ लगते रहें तो चौथे पाँचवें साल नए फलनेवाले पेड़ तैयार होते जाते हैं। नए पेड़ तैयार हो जाने पर पुराने पेड़ों को उखाड़ फेंकना चाहिए। इसकी मुख्य किस्में हनीड्यू (मधुविंदु), सिलोन, राँची आदि हैं। पपीता खाने के अनेको लाभ है।स्वास्थ्य के लिहाज से ये एक बहुत ही फायदेमंद फल है .

कोलेस्ट्रॉल कम करन में सहायक
पपीते में उच्च मात्रा में फाइबर मौजूद होता है. साथ ही ये विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट्स से भी भरपूर होता है. अपने इन्हीं गुणों के चलते ये कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में काफी असरदार है.

 वजन घटाने में
एक मध्यम आकार के पपीते में 120 कैलोरी होती है. ऐसे में अगर आप वजन घटाने की बात सोच रहे हैं तो अपनी डाइट में पपीते को जरूर शामिल करें. इसमें मौजूद फाइबर्स वजन घटाने में मददगार होते हैं .

रोग प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाने में
रोग प्रतिरक्षा क्षमता अच्छी हो तो बीमारियां दूर रहती हैं. पपीता आपके शरीर के लिए आवश्यक विटामिन सी की मांग को पूरा करता है. ऐसे में अगर आप हर रोज कुछ मात्रा में पपीता खाते हैं तो आपके बीमार होने की आशंका कम हो जाएगी.

आंखों की रोशनी बढ़ाने में
पपीते में विटामिन सी तो भरपूर होता ही है साथ ही विटामिन ए भी पर्याप्त मात्रा में होता है. विटामिन ए आंखों की रोशनी बढ़ाने के साथ ही बढ़ती उम्र से जुड़ी कई समस्याओं के समाधान में भी कारगर है.

पाचन तंत्र को सक्रिय रखने में
पपीते के सेवन से पाचन तंत्र भी सक्रिय रहता है. पपीते में कई पाचक एंजाइम्स होते हैं. साथ ही इसमें कई डाइट्री फाइबर्स भी होते हैं जिसकी वजह से पाचन क्रिया सही रहती है.

पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द में
जिन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दर्द की शिकायत होती है उन्हें पपीते का सेवन करना चाहिए. पपीते के सेवन से एक ओर जहां पीरियड साइकिल नियमित रहता है वहीं दर्द में भी आराम मिलता है.

पपीते की खेती से किसानों को कितना लाभ  


पपीता साल भर के अंदर ही फल देने लगती है, इसलिए इसे नकदी फसल समझा जा सकता है। इसको बेचने के लिए (कच्चे से लेकर पक्के होने तक) किसान भाइयों के पास लंबा समय होता है। इसलिए फसलों के उचित दाम मिलते हैं। 

1.8X1.8 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने के तरीके से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 65-70 हजार रुपये तक की लागत आती है, जबकि 1.25X1.25 मीटर की दूरी पर पेड़ लगाकर सघन तरीके से खेती करने पर 1.25 लाख रुपये तक की लागत आती है। लेकिन इससे न्यूनतम दो लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की शुद्ध कमाई की जा सकती है।

पपीते को बोने का समय

पपीता उष्ण कटिबंधीय फल है। इसकी अलग-अलग किस्मों को जून-जुलाई से लेकर अक्टूबर-नवंबर या फरवरी-मार्च तक बोया जा सकता है। पपीते की फसल पानी को लेकर बहुत संवेदनशील होती है। बुवाई से लेकर फल आने तक भी इसे उचित मात्रा में पानी चाहिए। पानी की कमी से पौधों और फलों की बढ़त पर असर पड़ता है, जबकि जल की अधिकता होने से पौधा नष्ट हो जाता है।  यही कारण है कि इसकी खेती उन्हीं खेतों में की जानी चाहिए जहां पानी एकत्र न होता हो। गर्मी में हर हफ्ते तो ठंड में दो हफ्ते के बीच इनकी सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए। 

पपीते की खेती में उन्नत किस्म की बीजों को अधिकृत जगहों से ही लेना चाहिए। बीजों को अच्छे जुताई किए हुए खेतों में एक सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। बीजों को नुकसान से बचाने के लिए कीटनाशक-फफूंदनाशक दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए। पपीते का पौधा लगाने के लिए 60X60X60 सेंटीमीटर का गड्ढा बनाया जाना चाहिए। इसमें उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फोस्फोरस और पोटाश और देशी खादों को डालकर 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई का तैयार पौधा इनमें रोपना चाहिए। 

पपीते के बेहतर उत्पादन के लिए 22 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 26 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान सबसे उपयुक्त होता है। इसके लिए सामान्य पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है। पपीते के पौधे में सफेद मक्खी से फैलने वाला वायरस के द्वारा होने वाला पर्ण संकुचन रोग और रिंग स्पॉट रोग लगता है। इससे बचाव के लिए डाइमथोएट (2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में) के घोल का छिड़काव करना चाहिए। उचित सलाह के लिए हमेशा कृषि वैज्ञानिकों या कृषि सलाहकार केंद्रो के संपर्क में रहना चाहिए। 

किस्में और उत्पादन

पपीता की देशी और विदेशी अनेक किस्में उपलब्ध हैं। देशी किस्मों में राची, बारवानी और मधु बिंदु लोकप्रिय हैं। विदेशी किस्मों में सोलों, सनराइज, सिन्टा और रेड लेडी प्रमुख हैं। रेड लेडी के एक पौधे से 100 किलोग्राम तक पपीता पैदा होता है। पूसा संस्थान द्वारा विकसित की गई पूसा नन्हा पपीते की सबसे बौनी प्रजाति है। यह केवल 30 सेंटीमीटर की ऊंचाई से ही फल देना शुरू कर देता है, जबकि को-7 गायनोडायोसिस प्रजाति का पौधा है जो जमीन से 52.2 सेंटीमीटर की ऊंचाई से फल देता है।

इसके एक पेड़ से 112 से ज्यादा फल प्रतिवर्ष मिलते हैं। इस प्रकार यह 340 टन प्रति हेक्टेयर तक की उपज देता है। अलग-अलग फलों की साइज़ 0.800 किलोग्राम से लेकर दो किलोग्राम तक होता है। आज के बाज़ार में पपीता 30 से 40 रूपये न्यूनतम में बिकता है, लेकिन थोक बाज़ार में आठ से दस रूपये प्रति किलो की दर से बेचने पर भी यह उपज तीन से साढ़े तीन लाख रुपये के बीच होती है। इस तरह सभी खर्चे काटने के बाद भी किसानों को दो लाख रुपये तक की बचत हो जाती है। 

अतिरिक्त लाभ

पपीते के दो पौधों के बीच पर्याप्त जगह होती है। इसलिए इनके बीच छोटे आकर के पौधे वाली सब्जियां किसान को अतिरिक्त आय देती हैं। इनके पेड़ों के बीच प्याज, पालक, मेथी, मटर या बीन की खेती की जा सकती है। केवल इन फसलों के माध्यम से भी किसान को अच्छा लाभ हो जाता है। इसे पपीते की खेती के साथ बोनस के रूप में देखा जा सकता है। पपीते की फसल के सावधानी यह रखनी चाहिए कि एक बार फसल लेने के बाद उसी खेत में तीन साल तक पपीते की खेती करने से बचना चाहिए क्योंकि एक ही जगह पर लगातार खेती करने से फलों का आकार छोटा होने लगता हैं।
©लवकुश
आवाज एक पहल

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