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Showing posts from January, 2023

हरसिंगार: लाजवाब सुगंध वाला यह पौधा हर रोग में असरदार है। पेड़ के हर भाग क्रमशः पत्ते, बीज, फूल और छाल की खास उपयोगिता है।

हरसिंगार: लाजवाब सुगंध वाला यह पौधा हर रोग में असरदार  है। पेड़ के हर भाग क्रमशः  पत्ते, बीज, फूल और छाल की खास उपयोगिता है। हरसिंगार के आकर्षण से आप में से अधिकतम लोग परिचित होंगे। सुबह के वक्त अगर इसकी खुशबू आप तक पहुंच जाए तो दिन बन जाता है। इसके फूल की खूबसूरती भी वाकई में सराहने लायक होती है। इस पोस्ट में हम लोग हरसिंगार के स्वास्थ्यवर्धक गुणों के बारे में बात करेंगे। क्या आपने कभी हरसिंगार की पत्तियों से बनी चाय पी है? या फि‍र इसके फूल, बीज या छाल का प्रयोग स्वास्थ्य एवं सौंदर्य उपचार के लिए क्या है?  आप नहीं जानते तो, जरूर जान लीजिए इसके चमत्कारी औषधीय गुणों के बारे में। इसे जानने के बाद आप हैरान हो जाएंगे... हरसिंगार के फूलों से लेकर पत्त‍ियां, छाल एवं बीज भी बेहद उपयोगी हैं। इसकी चाय, न केवल स्वाद में बेहतरीन होती है बल्कि सेहत के गुणों से भी भरपूर है। इस चाय को आप अलग-अलग तरीकों से बना सकते हैं और सेहत व सौंदर्य के कई फायदे पा सकते हैं। जानिए विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए इसके लाभ और चाय बनाने का तरीका - वि‍धि 1 : हरसिंगार की चाय बनाने के लिए इसकी दो पत्तियां और एक फूल के

जबूटीकाबा: एक रहस्यमई पेड़ जिसके तनो पर फल उगते हैं।

जबूटीकाबा: एक रहस्यमई पेड़ जिसके तनो पर फल उगते हैं, जिसे देख दंग रह जाएंगे आप। जबुटिकाबा, जबूतिकाबा या जबोटिकाबा, यह प्लिनिमा फूलगोभी परिवार का एक फल हैं जिसका अर्थ है कि फूल और फल सीधे तने से और पेड़ की बड़ी शाखाओं से उगते हैं। इसे ब्राजील के कॉनकॉर्ड अंगूर के पेड़ के रूप में जाना जाता है यह अर्जेंटीना, चिली और पेरू में भी पाया जाता है इसका वृक्ष एक धीमी गति से बढ़ने वाला सदाबहार फल है, जो पूरे वर्ष होता है लेकिन दक्षिण अमेरिका के इस पेड़ का आकार बेहद विचित्र होता है तथा इस विचित्र पेड़ के तने में ही इसका फल लग जाता हैं जो दूर से देखने में किसी बड़े दानव जैसे नजर आता है यह पेड़ गुंबद के आकार के होते हैं और लगभग 11 से 12 मीटर (35 से 40 फीट) तक बढ़ते हैं। इस पेड़ की उम्र 25-27 हजार वर्ष की होती हैं। आज तक जबुटिकाबा का यह पेड़ रहस्यमयी इस कारण है क्योंकि इसका फल पेड़ की शाखाओं में नहीं बल्कि उनके तने पर उगता है। यह पेड़ अपने शुद्ध-काले, सफेद-गूदे वाले फलों के लिए जाना जाता है जो सीधे ट्रंक पर उगते हैं, इस फल को कच्चा खाया जा सकता है या जेली, जैम, जूस या वाइन बनाने के लिए इस्तेमाल किया ज

कौन सी सब्जी किस महीने उगाएं ?

कौन सी सब्जी किस महीने उगाएं ? संबंधित महीनों में उगाई जाने वाली सब्जियों का विवरण निम्‍नानुसार है : जनवरी : राजमा, शिमला मिर्च, मूली, पालक, बैंगन, चप्‍पन कद्दू फरवरी : राजमा, शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्‍डी, अरबी, एस्‍पेरेगस, ग्‍वार मार्च :  ग्‍वार, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिण्‍डी, अरबी अप्रैल : चौलाई, मूली मई :  फूलगोभी, बैंगन, प्‍याज, मूली, मिर्च जून :  फूलगोभी, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, बीन, भिण्‍डी, टमाटर, प्‍याज, चौलाई, शरीफा जुलाई :  खीरा-ककड़ी-लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, भिण्‍डी, टमाटर, चौलाई, मूली अगस्‍त :  गाजर, शलगम, फूलगोभी, बीन, टमाटर, काली सरसों के बीज, पालक, धनिया, ब्रसल्‍स स्‍प्राउट, चौलाई सितम्‍बर :  गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, कोहीराबी, धनिया, सौंफ के बीज, सलाद, ब्रोकोली अक्‍तूबर :  गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, कोहीराबी, धनिया, सौंफ के

अश्‍वगंधा :सदियों से इंसानी सभ्यता का साथ निभाने वाले इस जड़ी बूटी के फायदे जानकर भौचक्के रह जाएंगे आप!

अश्‍वगंधा :सदियों से इंसानी सभ्यता का साथ निभाने वाले इस जड़ी बूटी के फायदे जानकर भौचक्के रह जाएंगे आप!  #आवाज_एक_पहल ---------------------++++++++++------------ सैकड़ों सालों से इंसानों को अश्वगंधा के बेमिसाल फायदों की जानकारी है। आयुर्वेद के पन्ने इसके गुणगान करते नहीं थकते। सदियों से कई रोगों के इलाज में अश्‍वगंधा का इस्‍तेमाल किया जाता रहा है। महत्‍वपूर्ण आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों में अश्‍वगंधा का नाम लिया जाता है। अथर्ववेद में भी अश्‍वगंधा के उपयोग एवं उपस्थिति के बारे में बताया गया है। भारतीय पारंपरिक औषधि प्रणाली में अश्‍वगंधा को चमत्‍कारिक एवं तनाव-रोधी जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। इस वजह से तनाव से संबंधित लक्षणों और चिंता विकारों के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में अश्‍वगंधा का नाम भी शामिल है। भारत में पांरपरिक रूप से अश्वगंधा का उपयोग आयुर्वेदिक उपचार के लिए किया जाता है। इसके साथ-साथ इसे नकदी फसल के रूप में भी उगाया जाता है। इसकी ताजा पत्तियों तथा जड़ों में घोड़े की मूत्र की गंध आने के कारण ही इसका नाम अश्वगंधा पड़ा।पूरे विश्व में अश्वगंधा की 3000 से भी अध

साधारण जुकाम से लकवा तक में असरदार जायफल ₹500 किलो बिकता है!

  साधारण जुकाम से लकवा तक में असरदार जायफल ₹500 किलो बिकता है! आवाज_एक_पहल प्रकृति के अनुपम उपहार हैं जायफल। इसे हम मसाले में प्रयोग करते हैं। मिरिस्टिका नामक वृक्ष से जायफल तथा जावित्री प्राप्त होती है। मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग 80 जातियां हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के द्वीपों पर उपलब्ध हैं। मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं। इस वृक्ष का फल छोटी नाशपाती के रूप का एक इंच से डेढ़ इंच तक लंबा, हल्के लाल या पीले रंग का गूदेदार होता है। पकने पर फल दो खंडों में फट जाता है और भीतर सिंदूरी रंग की जावित्री दिखाई देने लगती है। जावित्री के भीतर गुठली होती है, जिसके कड़े खोल को तोड़ने पर भीतर से जायफल प्राप्त होता है। । जायफल घिसकर उस पानी का सेवन करें व नाभि पर लेप लगाने से दस्त आने बन्द हो जाते हैं। मुहांसे होने पर जायफल को दूध में घिसकर चेहरे पर लेप लगाने से मुहांसे समाप्त हो जाते हैं। पाचन तंत्र आमाशय के लिए उत्तेजक होने से आमाशय में पाचक रस बढ़ता है, जिससे भूख लगती है। आंतों में पहुंचकर वहां से गैस हटाता है। सर्दी-खांसी सुबह-सुबह खाली पेट आधा चम्मच जायफल चाटने से गै

सांवा: जिंदगी के लिए जरूरी है सावा जैसे मोटे अनाज। इसका नियमित सेवन हमारे इम्यून सिस्टम को फौलाद जैसा मजबूत बनाता है।

सांवा: जिंदगी के लिए जरूरी है सावा जैसे मोटे अनाज। इसका नियमित सेवन हमारे इम्यून सिस्टम को फौलाद जैसा मजबूत बनाता है। आप में से जितने भी लोग इस पोस्ट को पढ़ रहे होंगे उनमें से बहुत से कम लोगों ने सावा के बारे में सुना होगा। खाना तो और भी दूर की बात रही होगी। यह भारत में एक उत्पादित मोटा अनाज है जिसे हम दशकों पहले भूल चुके हैं। महज 60 साल पहले तक हम भारतीय मुख्य रूप से मोटे अनाजों को खाने वाले लोग थे। हरित क्रांति के  बाद हमारी डाइट मुख्य रूप से चावल और गेहूं के जैसे अनाजों तक ही सिमट के रह गई है। पिछले 60 सालों में खेती में हुए परिवर्तन से हम बड़े गुमान के साथ इस बात को स्वीकार करते हैं कि आज हर भारतीय के थाली में खाने के लिए अनाज है। हमारे गोदामों में इसके पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है। पर इस क्रांति की एक ड्रॉबैक भी रही है । हमारे व्यवसायिक नीतियों के कारण हमने खेती की उत्पादन क्षमता तो बहुत बड़ा ली है लेकिन इसके गुणात्मक गुणों में बहुत भारी क्षति हुई है। कुछ दशक पहले तक हमारे तालियों में मोटे अनाज से बने चावल हलवा रोटी और अन्य व्यंजन शोभा बढ़ाते थे।   कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, कुटकी, चिन
आइए जानते है सुपर फूड मिलेट्स रागी के बारे में। रागी तकरीबन 4000 साल पहले भारत आया और अपने लाजवाब मेडिसिनल वैल्यू के कारण पूरे भारत में उत्पादित किया जाने लगा ! बीते कुछ वर्षों में जबसे अनाज के नाम पर सिर्फ चावल और गेहूं का प्रचलन बढ़ा तब बाजार ने इसे अनदेखा करना शुरू किया । रागी के किसान  हतोत्साहित होने लगे और धीरे-धीरे लोग ईसको भूल गए। अब यह विरले पर्व त्योहारों में जैसे जिउतिया के मौके पर  दिखता है। हालांकि  दुनिया आज भी इसके महत्व से अवगत है।  वियतनाम मे तो इसे बच्चे के जन्म के समय औरतो को दवा के रूप मे दिया जाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए यह रामबाण है तो आइए जानते हैं रागी की कहानी।  ईसे अंग्रेजी में फिंगर मिलेट कहा जाता है और इसका वानस्पतिक नाम इलुसिन कोराकाना है। मड़ुआ की विशेषता यह है कि यह समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर भी उगाया जा सकता है और इसमें आयरन एवं अन्य पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में निहित हैं। इसमें सूखे को झेलने की अपार क्षमता है और इसे लंबे समय (करीब 10 साल) तक भंडारित किया जा सकता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि मड़ुआ में कीड़े नहीं लगते। इसलिए सूखा प्रवण क्षेत्

किसानों के जीवन में मिठास घोल रही है स्ट्रॉबेरी की खेती

किसानों के जीवन में मिठास घोल रही है स्ट्रॉबेरी की खेती आवाज_एक_पहल लाल चटख रंग, दिल जैसी आकार मनमोहक खुशबू और रसीले स्वाद से भरपूर स्ट्रॉबेरी सबसे ज्यादा आकर्षण वाला फल है। पूरे विश्व में इसके 600 से भी ज्यादा वैराइटीज है। सब का स्वाद-रंग-रूप एक दूसरे से बिल्कुल अलग ! पहले इसकी खेती मुख्य रूप से यूरोपियन कंट्रीज में ही होती थी पर पिछले कुछ सालों में भारत का हर राज्य-हर जिला की खेती इसकी खेती में निपुण हो गया है। प्रोटीन, कैलोरी, फाइबर, आयोडीन, फोलेट, ओमेगा 3, पौटाशियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, विटीमिन बी और सी के गुणों से भरपूर स्ट्रॉबेरी का सेवन आपके शरीर को कई बीमारीयों से लड़ने की ताकत देता है। सपरफूड माना जाने वाला स्ट्रॉबेरी का रोजाना सेवन डायबिटीज, कैंसर और दिल की बीमारियों के साथ-साथ कई छोटी-मोटी परेशानियों को भी दूर करने में मदद करता है।  *स्ट्रॉबेरी की खेती* कोई भी खेती शुरू करने से पहले हम सभी उसकी लागत की जानने की इच्छा होती है। स्ट्रॉबेरी की खेती को शुरू करने में लागत थोड़ा ज्यादा है। 1 एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए कम से कम आप के पास तीन लाख होने चाहिए।  वहीं जहां तक मुन

चिलगोजा: कीमत और पौष्टिकता दोनों में काजू से श्रेष्ठ यह ड्राई फूड वाकई में बेमिसाल है!

चिलगोजा: कीमत और पौष्टिकता दोनों में काजू से श्रेष्ठ यह ड्राई फूड वाकई में बेमिसाल है! #आवाज_एक_पहल ----------------+++++++++++--------------- चिलगोजा एक ऐसा ड्राई फ्रूट है जिसके बारे में शायद ही आपने इससे पहले देखा और सुना होगा! हिमाचल प्रदेश का एक प्यारा सा शहर है किन्नौर! यही पाये जाते है चिलगोजा के पेड़!  खासकर टापरी से लेकर पूह तक केवल सतलुज नदि के किनारे ही पाया जाता है। किन्नौर के अलावा भारत में कश्मीर के छोटे से हिस्से में भी चिलगोजा पाया जाता है। उधर नेपाल, अफगानिस्तान और चीन में भी कुछ सीमित क्षेत्रों में चिलगोजा पाया जाता है।  किन्नौर में नेयोजा के नाम से मशहूर चिलगोजा को किन्नौर में नेयोजा के नाम से जाना जाता है। पाइन नट्स नाम का यह पेड़ चीड़ के पेड़ से मिलता जुलता है। चिलगोजा के पेड़ का तना सफेद होता है जबकि चीड़ की तरह ही इसके कोन्स होते हैं जिसमें बीज लगते है। ऊंची चट्टानों, पहाड़ों और पत्थरों के बीच बड़े पेड़ों से इन कोन्स को निकालना आसान नहीं होता। काफी मेहनत के बाद निकले चिलगोजे को मार्किट में खरीदने के लिए व्यवसायी दूर--दूर से किन्नौर के मुख्यालय रिकांगपिओ पहुंचते है

जामुन_फुटु #जामुन_मुशरूम #जामुन_खाखरी #कवक #Fungi #mushroom #जामुन

#जामुन_फुटु #जामुन_मुशरूम #जामुन_खाखरी #कवक #Fungi #mushroom #जामुन  Common name :-Penny Bun     Botanical name :- Boletus edulis       Local name :- jamun mushroom, jamun khakhri #Scientific_classification Kingdom:- Fungi   Division:- Basidiomycota       Class:-Agaricomycetes           Order:-Boletales               Family:-Boletaceae                  Genus:-Boletus                      Species:-B. edulis       जामुन खुखरी एवं जामुन मशरूम के नाम से मशहूर यह खाने योग्य मशरूम सिर्फ जामुन पेड़  ( Syzygium cuminii) के साथ पाया जाता है.यह मानसून के मौसम में लोकप्रिय है, विशेष रूप से हमारे बस्तर के ग्रामीण-जनो के बीच यह प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत एवं ग्रामीणों के बीच बहुत लोकप्रिय व्यंजन के रूप में जाना जाता है..      जामुन मशरूम की टोपी परिपक्वता होने पर लगभग 3-12 इंच चौड़ी होती है, इसे छूने से थोड़ा चिपचिपा जरूर लगता है,जामुन मशरूम young होने पर उत्तल होता है पर जैसे जैसे उम्र होते जाता है यह चपटा होता है, इसका रंग आम तौर पर लाल-भूरे रंग का होता है, जो किनारे के पास के क्षेत्रो में सफ़ेद हो जाता

अश्‍वगंधा :सदियों से इंसानी सभ्यता का साथ निभाने वाले इस जड़ी बूटी के फायदे जानकर भौचक्के रह जाएंगे आप!

अश्‍वगंधा :सदियों से इंसानी सभ्यता का साथ निभाने वाले इस जड़ी बूटी के फायदे जानकर भौचक्के रह जाएंगे आप!  #आवाज_एक_पहल सैकड़ों सालों से इंसानों को अश्वगंधा के बेमिसाल फायदों की जानकारी है। आयुर्वेद के पन्ने इसके गुणगान करते नहीं थकते। सदियों से कई रोगों के इलाज में अश्‍वगंधा का इस्‍तेमाल किया जाता रहा है। महत्‍वपूर्ण आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों में अश्‍वगंधा का नाम लिया जाता है। अथर्ववेद में भी अश्‍वगंधा के उपयोग एवं उपस्थिति के बारे में बताया गया है। भारतीय पारंपरिक औषधि प्रणाली में अश्‍वगंधा को चमत्‍कारिक एवं तनाव-रोधी जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। इस वजह से तनाव से संबंधित लक्षणों और चिंता विकारों के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में अश्‍वगंधा का नाम भी शामिल है। भारत में पांरपरिक रूप से अश्वगंधा का उपयोग आयुर्वेदिक उपचार के लिए किया जाता है। इसके साथ-साथ इसे नकदी फसल के रूप में भी उगाया जाता है। इसकी ताजा पत्तियों तथा जड़ों में घोड़े की मूत्र की गंध आने के कारण ही इसका नाम अश्वगंधा पड़ा।पूरे विश्व में अश्वगंधा की 3000 से भी अधिक प्रजातियां हैं। भारत में इसके महज 90 प्रज

जरबेरा के एक एकड़ की खेती से होती है 15 लाख की सालाना आमदनी!

जरबेरा के एक एकड़ की खेती से होती है 15 लाख की सालाना आमदनी! #आवाज_एक_पहल रंग बिरंगे जरबेरा की खेती किसानों के लिए समृद्धि का रास्ता खोल रहा है। हाल के दिनों में यूपी-बिहार समेत भारत के अन्य राज्यों में भी जरबेरा की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। मैं पर्सनली दस से अधिक जरबेरा उत्पादक किसानों को जानता हूं जो इसके खेती से पूरी तरह से संतुष्ट हैं । जरबेरा अफ्रीकन मूल का एक फूल है जो कि कई रंगों का होता है। जरबेरा की तिन-चार  खूबियां किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध होती है ।पहला तो इसका पौधा काफी आसानी से लगने वाला होता है दूसरा एक बार लगा देने के बाद अगले दो या तीन सालों तक आप इससे उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं तिसरा कि इसमें सालों भर फूल आते हैं और आखिरी यह की इसके फूल सात-आठ दिनों तक आसानी से जीवित रहते हैं। हालांकि जरबेरा की खेती खुले में ना करके पॉलीहाउस में करना बेहतर माना जाता है. पॉलीहाउस में खेती करने से फूल की गुणवत्ता काफी बेहतर रहती है जिससे इसे अधिक दाम अर्जित होते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि हर राज्य के उद्यान विभाग इसकी खेती को प्रोत्साहित कर रही है और इस पर तकरीबन 50% तक अनु

जैविक सूत्र:-

कीट व रोगों के प्रबंधन के लिए केवल रसायनिक कीटनाशक ही काम नही आते कुछ प्रतिरोधी रसायन किसान भाई थोड़े से खर्च में अपने घरों पर ही बना सकते है,उनमें से एक है।और रसायनिक कीटनाशको से होने वाले दुष्प्रभावों को कुछ हद तक रोक सकते है। आज की कड़ी में हम जानेंगे कि किसान भाई कैसे अपने घर पर ही रोग प्रतिरोधी रसायन कीटनाशक व टॉनिकों का निर्माण कर सकते है। किसानों द्वारा अनेक प्रकार के तरल खाद प्रयोग किए जा रहे हैं। कुछ महत्वपूर्ण तथा वृहत रूप से प्रयोग किए  जाने वाले सूत्रों का विवरण नीचे दिया जा रहा है। 01 संजीवक 100 किग्रा. गाय का गोबर ,  100 लीटर गौ-मूत्र तथा 500 ग्रा. गुड़   500 ली. क्षमता वाले ड्रम में 300 लीटर जल में मिलाकर 10 दिन सड़ने दें। 20 गुना पानी मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र में मृदा पर स्प्रे करें अथवा सिंचाई जल के साथ प्रयोग करें। 02 अमृत पानी 500 ग्रा. शहद के साथ 10 किलोग्राम गाय के गोबर को लेकर तब तक फेटें (एक लकड़ी की सहायता से) जब तक वह लुगदी (पेस्ट) जैसा न हो जाये, इसकेबाद इसमें 250 ग्रा. गाय का देशी घी मिलाकर तेजी से  मिलाये। इसे 200 ली. पानी में मिलाकर घोल लें। इस घोल को एक एकड़ ज