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Showing posts from February, 2021

राजिम माघी पुन्नी मेला:- किसानों को लुभा रही है कृषि विभाग की प्रदर्शनी का (आई.एफ.एस मॉडल)

  राजिम माघी पुन्नी मेला:- किसानों को लुभा रही है कृषि विभाग की प्रदर्शनी का (आई.एफ.एस मॉडल) श्री नीलेश कुमार क्षीरसागर कलेक्टर गरियाबंद ,श्री चंद्रकांत वर्मा मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत गरियाबंद, श्री सुखनंदन राठौर ए. एस. पी. गरियाबंद एवं श्री जे. आर. चौरासिया ए. डी. एम. गरियाबंद ने किया कृषि विभाग की प्रदर्शनी का निरीक्षण। श्री एफ.आर.कश्यप उप संचालक कृषि जिला गरियाबंद ने बताया कि क्या है ? एकीकृत कृषि प्रणाली (I.F.S मॉडल) भारत में जनसँख्या वृद्धि एक  विकट समस्या हैं जहाँ एक और किसान के पास सीमित कृषक भूमि है वहीँ दूसरी और सीमित संसाधनों के रहते किसान को आवश्यक है की कृषि से अधिक से अधिक उपज प्राप्त हो सके इसलिए रसायनो का उपयोग कृषि में बढ़ता जा रहा है जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। कृषि में फसलोत्पादन अधिकतर मौसम आधारित होने के कारण विपरीत मौसम परिस्थितियों में आशान्वित उपज प्राप्त नहीं हो पाती। इससे कृषक आय पर प्रभाव पड़ता है जो की आर्थिक व् सामाजिक दृष्टिकोण से भी कृषक को प्रभावित करता है। इस हेतु यह आवश्यक हो गया है की कृषि में फसल के साथ साथ अन्य  घटको को भी समेकित किय

सूत्रकृमि:- लाखो टन फसल को चौपट कर जाती है सूत्रकृमि

  सूत्रकृमि:- लाखो टन फसल को चौपट कर जाती है " सूत्रकृमि" डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर(वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर भारत में निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण बढ़ती हुई मांग के अनुरूप पूर्ति ना कर पाना भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए चिंता का विषय है। हल्दी की फसल के उत्पादन में गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक कारण यह भी है कि कृषकों को हानी पहुँचाने वाले सूत्रकृमी की समस्याओं का उचित समाधान करने की जानकारी नहीं है। अत: प्रस्तुत लेख में धान और गेहूं के उत्पादन में बाधा पहुँचाने वाले जड़ – गांठ रोग के कारक, मेलेड़ोगाइन ग्रेमिनिकोला एवं उनका प्रबंधन हेतु उचित नियंत्रण विधियों का उल्लेख किया गया है। धान और गेहूं में जड़ – गांठ सूत्रकृमी, मेलेड़ोगाइन ग्रेमिनिकोला की व्यापक समस्या है। यह समस्या, पूर्व, उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और बिहार कुछ हिस्सों में इतनी गंभीर है जिससे फसल की पैदावार पर असर पड़ता है। यह सूत्रकृमी गतिहीन अंत: परजीवी है। विश्व में इस सूत्रकृमी की 90 से अधिक प्रजातियाँ ही भारत में प्रचलित हैं। मेलेड़ोगा

सावधान:-गेहूं की फसल में लगा फफूंद जनक रोग

सावधान:-गेहूं की फसल में लगा फफूंद जनक रोग गेहूं की बालियां ऊपर से नीचे सूखने लगे तो समझो फफूंद रोग डॉ गजेंद्र चंद्राकर गेहूं की फसल में फफूंद जनक रोग के लक्षण पाए गए हैं। पौधों पर फफूंद के कारण गेहूं की बालियां सूखने का खतरा पैदा हाे गया है। छत्तीसगढ़ के रायपुर बलौदाबाजार जिले में कृषि वैज्ञानिकों ने इस रोग के लक्षण में देखे हैं। वैज्ञानिकों ने गेहूं की फसल पर फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट नामक फफूंद जनक रोग के होने की पुष्टि कर दी है। किसानों ने कई गॉवो में पहली बार रोग के लक्षण देखने की बात कही है। इसकी वजह खेतों में ज्यादा नमी हो सकती है। गेहूं की फसल में पहली वार लगा फफूंद रोग। विशेषज्ञ ने कहा-सूखने लगती है गेहूं की फसल कृषिविशेषज्ञ ने गेहूं की फसल में फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट फफूंद जनक रोग के लक्षण देखे। इसमें फंगस तो स्पष्ट नहीं दिखती पर रोग के कारण गेहूं फसल की बालियां उपर से नीचे की ओर सूखने लगती हैं। इस वजह से दानों की ग्रोथ नहीं हो पाती और उत्पादन गिर जाता है। खेतों में लंबे समय तक नमी रहने से लगी फंगस इसरोग का प्रकोप मौसम के प्रतिकूल होने के कारण हुआ। वर्षा के साथ कोहरा छाने एवं बादल

जैविक खेती :-जैविक खाद बनाने का सस्ता विकल्प है ‘प्रोम’ (PROM)

  जैविक खेती :- जैविक खाद बनाने का  सस्ता विकल्प है ‘प्रोम’ (PROM)  फसल के उत्पादन में फॉस्फेट तत्व का प्रमुख योगदान होता है! रासायनिक उर्वरकों के लगातार उपयोग करने से खेती की लागत भी बढ़ती जा रही है, जमीन सख्त हो रही है, भूमि में पानी सोखने की क्षमता घटती जा रही है। वहीं दूसरी तरफ भूमि तथा उपभोक्ताओं के स्वास्थ पर प्रतिकूल असर भी पड़ रहा है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए नया उत्पाद विकसित किया गया है, जिसमें कार्बनिक खाद के साथ-साथ रॉक फॉस्फेट की मौजूदगी भी होती है। जिसे हम प्रोम के नाम से जानते हैं। ‘ प्रोम’ को विस्तार पूर्वक समझिये। प्रोम (फॉस्फोरस रिच आर्गेनिक मैन्योर) तकनीक से जैविक खाद घर पर भी तैयार की जा सकती है।  प्रोम, जैविक खाद बनाने की एक नई तकनीक है। जैविक खाद बनाने के लिए गोबर तथा रॉक फॉस्फेट को प्रयोग में लाया जाता है। रॉक फॉस्फेट की मदद से रासायनिक क्रिया करके सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) तथा डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP) रासायनिक उर्वरक तैयार किए जाते हैं। प्रोम में विभिन्न फॉस्फोरस युक्त कार्बनिक पदार्थों जैसे- गोबर खाद, फसल अपशिष्ट, चीनी मिल का प्रेस मड, जूस उद्योग का अपशिष्

लौकी के फल में दाग कैसे दूर करे।

Dr.Gajendr Chandrakar Sr: ■Metiram 55%+ pyraclostrobin5%WG 6 ग्राम + 2 मिली SIL G सील जी प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें । ■Dimethomorph 12+Pyraclostrobin 6.7% WG -1.5 - 2 gm/ Lit.

जैविक खेती- यूरिया का जैविक विकल्प ग्लीरिसिडिया पेड़

जैविक खेती- यूरिया का जैविक विकल्प ग्लीरिसिडिया पेड़ ◆गिरिपुष्प ◆ऊंदरीमार इस पेड़ के बारे में मैं पिछले चार सालों से जानता हूँ इसकी उपयोगिता मुझे मेरे एक मित्र ने बताई थी उन्होंने इस पर काफी कार्य किया था कई पौधों का रोपण भी करवाया था। मैं इसका स्थानीय नाम छत्तीसगढ़ में आज भी जानना चाहता हूं ।अभी अभी नन्द किशोर प्रजापति जी की पोस्ट में इसका एक और स्थानीय नाम मुझे पता चला "ऊंदरीमार" मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों में चूहों को ऊंदरा और चुहिया को ऊंदरी कहा जाता है और गिरिपुष्प भी चूहा नियंत्रण में सहायक है तो यह नाम शायद इसकी वजह से ही दिया गया होगा।  ■ कृषि कार्य मे उपयोग होने वाले रसायनिक उर्वरको में सबसे अधिक उपयोग होने वाला उर्वरक है "यूरिया" पिछले कुछ दशकों से यूरिया की अंधाधुंध किसान भाई छिड़काव कर रहे है जिससे कि भू- संरचना काफी बिगड़ती चली जा रही है। वही कई राज्य यूरिया की कमी से जूझ रहे है। ऐसे में जरूरत है कि यूरिया का कुछ न कुछ जैविक विकल्प निकाला जाए।  ■ यूरिया पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है आज के समय मे ऐसे  जैविक विकल्पों की आवश्यकता है जिससे नाइट्रोजन की पूर्

EPN 18-जानिए क्या है? जैविक उत्पाद EPN 18

  EPN 18-जानिए क्या है? जैविक उत्पाद EPN 18 अधिकांश मानवीय बीमारियों का कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कृषि में उपयोग हो रहे रसायन भी हैं। इनमें मुख्य रूप से मानव द्वारा उपयोग की जाने वाली विषाक्त सब्जियां,अनाज एवं फल हैं जिनकी सुरक्षा हेतु अंधाधुंध रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक का उपयोग किया जाता है। इन उर्वरक व कीटनाशकों के प्रयोग से अत्यधिक प्रयोग से इनके प्रति कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और कुछ प्रजातियों में तो प्रतिरोधक क्षमता विकसित भी हो चुकी है। इसके अलावा रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक अत्यधिक महगे होने के कारण किसानों को इन पर अत्यधिक खर्च करना पड़ता है। उर्वरक व कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से फसलों, सब्जियों व फलों की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इन वस्तुस्थिति के फलस्वरूप वैज्ञानिकों का ध्यान प्राकतिक एवं जैविक उर्वरक व कीटनाशकों की ओर गया है जोन केवल सस्ते हैं बल्कि जिनके उपयोग से तैयार होने वाली फसल के किसी प्रकार के रासायनिक दुष्प्रभाव भी नहीं रहते हैं। आज की कड़ी में हम एक ऐसे जैविक उत्पाद के बारे में बताएंगे जो कि पूर्णतः जैविक है और किसानों के लिए काफी

रोग नियंत्रण:- गोभी में लग रही है "डाउनी मिल्ड्यू" तो ना होंवे परेशान ऐसे करे इस रोग का प्रबंधन

  रोग नियंत्रण:- गोभी में लग रही है "डाउनी मिल्ड्यू" तो ना होंवे परेशान ऐसे करे इस रोग का प्रबंधन गोभी की सब्जी खाने में तो काफी लजीज लगती है परंतु सब्जियों में देखा जाए तो सबसे ज्यादा गोभी वर्गीय सब्जियों में कीट व्याधि/रोग व्याधि की समस्या आती है।  कुछ दिनों से कई किसान भाइयों ने गोभी की मृदुरोमिल फफूँदी (डाउनी मिल्ड्यू) नामक रोग के प्रबंधन के बारे में जानकारी मांगी है। इसका अर्थ यह है कि अभी इस रोग का प्रभाव देखने को काफी मिल रहा है। अतः आज की कड़ी में इस रोग के लक्षण व प्रबंधन के बारे में हम बात करेंगे। मृदुरोमिल फफूँदी (डाउनी मिल्ड्यू) लक्षण ■तनो पर भूरे धसे हुए धब्बे दिखाई देते हैं जिन पर फफूदी की वृद्धि होती है।  ■ पत्तियों की निचली सतह पर बैगनी भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है जिनमे फफूदी की वृद्धि होती है।  ■फूलगोभी के फूल संक्रमित हो कर सड़ने लगते है। ■इस रोग से फसल छोटे से लेकर बीज तैयार होने तक किसी भी समय रोग का प्रकोप प्रभावित हो सकता है.  ■प्रभावित पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है तथा अधिक प्रभाव से पौधा मर जाता है.  ■फूल लगते समय फूलों पर काले धब्बे के रूप में यह

नगदी फसल:-ग्वारपाठा/एलोवेरा की खेती कब और कैसे करें : एक हेक्टेयर में होती है लाखों की कमाई

नगदी फसल:- ग्वारपाठा/एलोवेरा की खेती कब और कैसे करें : एक हेक्टेयर में होती है लाखों की कमाई एलोवेरा की बाजार में बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। हर्बल और कास्मेटिक्स में इसकी मांग निरंतर बढ़ती ही जा रही है। इन प्रोडक्टसों मेंअधिकांशत: एलोवेरा का उपयोग किया जा रहा है। सौंदर्य प्रसाधन के सामान में इसका सर्वाधिक उपयोग होता है। वहीं हर्बल उत्पाद व दवाओं में भी इसका प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जाता है। आज बाजार में एलोवेरा से बने उत्पादों की मांग काफी बढ़ी हुई है। एलोवेरा फेस वॉश, एलोवेरा क्रीम, एलोवेरा फेस पैक और भी कितने प्रोक्ट्स है जिनकी मार्केट मेें डिमांड है। इसी कारण आज हर्बल व कास्मेटिक्स उत्पाद व दवाएं बनाने वाली कंपनियां इसे काफी खरीदती है। कई कंपनियां तो इसकी कॉन्टे्रक्ट बेस पर खेती भी कराती है। यदि इसकी व्यवसायिक तरीके से खेती की जाए तो इसकी खेती से सालाना 8-10 लाख रुपए तक कमाई की जा सकती है। आइए जानते हैं कैसे हम इसकी व्यवसायिक खेती कर ज्यादा कमाई कर सकते हैं। एलोवेरा क्या है? घृत कुमारी या अलो वेरा/एलोवेरा, जिसे क्वारगंदल, या ग्वारपाठा के ना