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Showing posts from December, 2020

कृषि सलाह:-फलदार वृक्षों को रोगों से बचाये अपने घर पर बोर्डो पेस्ट बनाएं।

  कृषि सलाह:-फलदार वृक्षों को रोगों से बचाये अपने घर पर बोर्डो पेस्ट बनाएं। आवश्यक सामग्री - 1. नीला थोथा (Copper sulphate) - एक किलोग्राम 2. चुना (बुझा हुआ) - एक किलोग्राम । 3. तीन बाल्टी (प्लास्टिक के) । 4. 10 लीटर पानी । बोर्डो पेस्ट तैयार करने की विधि - ● सबसे पहले तो आप बोर्डो पेस्ट बनाने के एक दिन पहले शाम को 1 किग्रा. नीला थोथा (Copper sulphate) को एक प्लास्टिक की बाल्टी में 5 लीटर पानी में घोलकर या डुबाकर रख दें । क्योंकि नीला थोथा अच्छी तरह घुलने में अधिक समय लेता है । ● अब जब अगले दिन जब आप बोर्डो पेस्ट तैयार कर रहे हो उस समय 1 किग्रा. चुना (slaked lime)को एक दूसरी प्लास्टिक की बाल्टी के 5 लीटर पानी मे अच्छी तरह घोल लीजिए । ● अब आपके पास दो अलग - अलग प्लास्टिक की बाल्टी में एक-एक किग्रा . चुना और नीला थोथा 5 -5 लीटर पानी मे घुला हुआ है । ● अब आप एक लोहे की साफ छड़ या कोई भी लोहे की चीज लेकर नीला थोथा वाले घोल में लगभग 20 से 25 सेकेंड तक आधा डूबकर रखिये । अब जब आप इसे डुबाकर निकालेंगे तो देखेंगे कि नील

जैविक खेती:-गौ मूत्र से बनाये जैविक कीटनाशक

  जैविक खेती:- गौ मूत्र से बनाये जैविक कीटनाशक अधिकांश मानवीय बीमारियों का कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कृषि में उपयोग हो रहे रसायन भी हैं। इनमें मुख्य रूपसे मानव द्वारा उपयोग की जाने वाली विषाक्त सब्जियां,अनाज एवं फल हैं जिनकी सुरक्षा हेतु अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इन कीटनाशकों के प्रयोग से अत्यधिक प्रयोग से इनके प्रति कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और कुछ प्रजातियों में तो प्रतिरोधक क्षमता विकसित भी हो चुकी है। इसके अलावा रासायनिक कीटनाशक अत्यधिक महगे होने के कारण किसानों को इन पर अत्यधिक खर्च करना पड़ता है। कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से फसलों, सब्जियों व फलों की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इन वस्तुस्थिति के फलस्वरूप वैज्ञानिकों का ध्यान प्राकतिक एवं जैविक कीटनाशकों एवं रोगनाशकों की ओर गया है जो न केवल सस्ते हैं बल्कि जिनके उपयोग से तैयार होने वाली फसल के किसी प्रकार के रासायनिक दुष्प्रभाव भी नहीं रहते हैं। आज की कड़ी में ऐसे ही एक गौमूत्र से तैयार होने वाले कीटनाशक के बारे में बात करेंगे जो कि किसान भाई अपने घर पर आसानी से बनाकर उप

जैविक खेती:-कामधेनु नियंत्रक का प्रयोग कर किसान भाई अपनी फसल को कीट/रोग से आसानी से बचा सकते है।

  जैविक खेती:- कामधेनु नियंत्रक का प्रयोग कर किसान भाई अपनी फसल को कीट/रोग से आसानी से बचा सकते है।   अधिकांश मानवीय बीमारियों का कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कृषि में उपयोग हो रहे रसायन भी हैं। इनमें मुख्य रूपसे मानव द्वारा उपयोग की जाने वाली विषाक्त सब्जियां,अनाज एवं फल हैं जिनकी सुरक्षा हेतु अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इन कीटनाशकों के प्रयोग से अत्यधिक प्रयोग से इनके प्रति कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और कुछ प्रजातियों में तो प्रतिरोधक क्षमता विकसित भी हो चुकी है। इसके अलावा रासायनिक कीटनाशक अत्यधिक महगे होने के कारण किसानों को इन पर अत्यधिक खर्च करना पड़ता है। कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से फसलों, सब्जियों व फलों की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इन वस्तुस्थिति के फलस्वरूप वैज्ञानिकों का ध्यान प्राकतिक एवं जैविक कीटनाशकों एवं रोगनाशकों की ओर गया है जो न केवल सस्ते हैं बल्कि जिनके उपयोग से तैयार होने वाली फसल के किसी प्रकार के रासायनिक दुष्प्रभाव भी नहीं रहते हैं। आज की कड़ी में ऐसे ही एक जैविक विधि से तैयार उत्पाद के बारे में बात करेंगे

आमचो बस्तर: बस्तर के अनाजों को कुकीज के रूप में मिली एक नई पहचान

  आमचो बस्तर:- बस्तर के अनाजों को कुकीज के रूप में मिली एक नई पहचान कोदो, कुटकी, रागी, महुआ, काजू, इमली से तैयार किया जा रहा है स्वादिष्ट और स्वास्थवर्धक कुकीज आमचो बस्तर बेकरी के उत्पादों का बाजार में है भारी डिमांड आइए जाने है क्या?' आमचो बस्तर' बस्तर के कोदों, कुटकी, रागी, महुआ, काजू, इमली आदि से महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा स्वादिष्ट और स्वास्थवर्धक खाद्य सामाग्री बनायी जा रही है। बस्तर के अनाजों से निर्मित इन उत्पादों को जहां कुकीज के रूप एक नई पहचान मिली है, वहीं इन उत्पादों को बाजार में भी भारी डिमांड है। दरअसल बात यह है कि छत्तीसगढ़ सरकार प्रदेश के किसानों उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के साथ-साथ बेहतर बाजार उपलब्ध कराने के लिए ब्रांडिग नेम के रूप में भी तैयार करने की पहल कर रही हैं। इससे किसानों और नवाचारों को काफी लाभ भी हुआ है। इसी कड़ी में बस्तर जिले के जगदलपुर जिला मुख्यालय के समीप स्थित कुदाल गांव की जय मां काली स्व-सहायता समूह द्वारा संचालित आमचो बस्तर बेकरी में रागी, कोदो, कुटकी, महुआ, काजू, इमली आदि से कुकीज और अन्य उत्पादों का नि

सौर सुजला योजना:-सौर पम्पों से बदलेंगे नजारे लहलहायेंगे खेत हमारे।

सौर सुजला योजना:-सौर पम्पों से बदलेंगे नजारे लहलहायेंगे खेत हमारे। सौर सुजला योजना के तहत राज्य सरकार छत्तीसगढ़ में किसानों को सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई पंप प्रदान करेगा जिससे वे अपनी भूमि पर कृषि व सिंचाई कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के ऐसे खेत जहां बिजली की सुविधा नही है वैसे खेत के किसान सौर सुजला योजना का लाभ ले सकते है। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के किसान के लिए सौर सुजला योजना छत्तीसगढ़ 2020 (Saur Sujala Yojana CG) शुरू की है। जिसमें किसानों को ट्यूबवेल चलाने के लिए सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई पंप पर अनुदान दे रही है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को कम कीमत पर सोलर पंप उपलब्ध करना है, राज्य के कई जिलों के खेतों में ट्यूबवेल के माध्यम से सिंचाई करने के लिए बिजली नहीं है। और सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई पंप की कीमत अधिक होने के कारण गरीब किसान नहीं खरीद सकतें हैं। उन किसानों को सरकार योजना के माध्यम से रियायती दारों पर सोलर पम्प उपलब्ध करा रही है। योजना के तहत वितरित सोलर पम्पों के प्रकार सौर सुजला योजना के तहत लाभार्थियों को 2 तरह के सोलर पंप वितरित किये जायेंगे। इन सोलर पम्पों की क

कृषि सलाह-अखबार विधि से अपने बीज का अंकुरण परीक्षण किसान भाई स्वयं करे।

  कृषि सलाह-अखबार विधि से अपने बीज का अंकुरण परीक्षण किसान भाई स्वयं करे। सुजीत सुमेर एम.एस.सी द्वितीय वर्ष कृषि मौसम विज्ञान  इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ. ग.) यदि बीज निरोग, स्वस्थ और ओजपूर्ण है तो फसल भी अच्छी होगी। किसी फसल की उन्नत प्रजाति का शुद्ध बीज उपयोग करने से अच्छी पैदावार जबकि अशुद्ध बीज से उत्पादन में हानि की संभावना अधिक होती है। बीज की अशुद्धता, खरपतवारों, बीमारियों या कीड़े मकोड़ों और खराब अंकुरण क्षमता के कारण हो सकती है। अच्छी देसी तथा उन्नत किस्म का चुनाव करने के बाद भी बोने से पहले दो काम ज़रूर करने चाहियें. एक तो बोने से पहले ही अंकुरण कर के पड़ताल कर के देख लें कि बीज अच्छा है या नहीं? अच्छा बीज होने पर भी बीज-उपचार कर के ही बुआई करें। बोने से पहले यह भी आवश्यक है कि किसान बीज का अपने स्तर पर परीक्षण करे ताकि एक अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। जाने क्या है?अखबार विधि:- बीजअंकुरण की अखबार विधि बेहद कारगर होती है। इस तरीके से बीज दो से तीन दिन के अंदर अंकुरित हो जाते हैं। बाद में उन्हें खेत में जगह बनाकर बुवाई कर तुरंत पानी देना लाभप्रद रहता है। इसके लिए पहले

समसामयिक सलाह:-अधिक पैदावार के लिए जनवरी माह में करे ये कृषि कार्य

  समसामयिक सलाह:-अधिक पैदावार के लिए जनवरी माह में करे ये कृषि कार्य। अच्छी उपज व पैदावार के लिए जरूरी है कि सही समय पर सही कार्य किया जाए। अतः आज की कड़ी में हम जानेंगे कि जनवरी माह में किसान भाइयों को क्या -क्या कार्य करने चाहिए। जिससे कि किसान भाइयों को अच्छी उपज की प्राप्ति हो। गेहूँ   ■गेहूँ में दूसरी सिंचाई बोआई के 40-45 दिन बाद कल्ले निकलते समय और तीसरी सिंचाई बोआई के 60-65 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें। ■गेहूँ की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्यूमिनियम फास्फाइड की टिकिया का प्रयोग करें। चना ■फूल आने के पहले एक सिंचाई अवश्य करें। फसल में उकठा रोग की रोकथाम के लिए बुआई से पूर्व ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर भूमि शोधन करना चाहिये। मटर मटर में बुकनी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू) जिसमें पत्तियों, तनों तथा फलियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है, की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर घुलनशील गंधक 80%, 2.0 किग्रा 500 – 600 लीटर पानी में घोलकर 10-12 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। राई-सरसों ■राई-सरसों में दाना भरने

समसामयिक सलाह-अच्छी पैदावार के लिए दिसम्बर माह में करे ये कृषि कार्य ।

  समसामयिक सलाह-अच्छी पैदावार के लिए दिसम्बर माह में करे ये कृषि कार्य ।  रबी फसलों की बेहतर पैदावार के लिए उनकी समय-समय पर देखभाल करना बेहद जरूरी होता है। इसके लिए जरूरी है कि फसलों को उनकी आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई-गुड़ाई व रोगों से सुरक्षित किया जाना जरूरी है।  आज की कड़ी में हम जानेंगे  दिसंबर माह में किए जाने वाले कृषि कार्यों के बारे में। गेहूं हेतु समसामयिक सलाह ■गेहूं की शेष रही बुवाई इस माह पूरी कर लें, क्योंकि जितनी ज्यादा देरी से बुवाई की जाती है उतना ही कम उत्पादन प्राप्त होता है। देरी से बुवाई करने पर गेहूं की बढ़वार कम होती है और कल्ले कम निकलते हैं।  ■ देरी से बुवाई करने पर बीज की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए। इसलिए प्रति हेक्टेयर बीज दर बढ़ाकर 125 किग्रा कर लें। वहीं अगर यूपी- 2425 प्रजाति ले रहे हैं, तो बीज की दर 150 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लें। गेहूं की बुवाई कतारों में हल के पीछे कूड़ों या फर्टीसीड ड्रिल से करें। ■गेहूं की फसल में गेहुंसा एवं जंगली जई के नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रति डब्लूपी की 13.5 ग्राम या सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रति मेट सल्फ्यूरान मि

उद्यानिकी :-किसान की आमदनी बढ़ा सकती है पपीते की खेती

 उद्यानिकी:- किसान की आमदनी बढ़ा सकती है पपीते की खेती  पपीता सबसे कम समय में फल देने वाला पेड है इसलिए कोई भी इसे लगाना पसंद करता है, पपीता न केवल सरलता से उगाया जाने वाला फल है, बल्कि जल्‍दी लाभ देने वाला फल भी है, यह स्‍वास्‍थवर्धक तथा लोक प्रिय है, इसी से इसे अमृत घट भी कहा जाता है, पपीता में कई पाचक इन्‍जाइम भी पाये जाते है तथा इसके ताजे फलों को सेवन करने से लम्‍बी कब्‍जियत की बिमारी भी दूर की जा सकती है। उपयुक्त जलवायु :- पपीते की अच्‍छी खेती गर्म नमी युक्‍त जलवायु में की जा सकती है। इसे अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है, न्‍यूनतम 5 डिग्री सेल्सियस से कम नही होना चाहिए लू तथा पाले से पपीते को बहुत नुकसान होता है। इनसे बचने के लिए खेत के उत्‍तरी पश्चिम में हवा रोधक वृक्ष लगाना चाहिए पाला पडने की आशंका हो तो खेत में रात्रि के अंतिम पहर में धुंआ करके एवं सिचाई भी करते रहना चाहिए। उपयुक्त भूमि :- जमीन उपजाऊ हो तथा जिसमें जल निकास अच्‍छा हो तो पपीते की खेती उत्‍तम होती है, जिस खेत में पानी भरा हो उस खेत में पपीता कदापि नही लगाना चाहिए। क्‍य

उद्यानिकी:- मिर्ची की खेती ने दंतेवाड़ा के जयपाल को बनाया लखपति

  उद्यानिकी:- मिर्ची की खेती ने दंतेवाड़ा के जयपाल को बनाया लखपति दंतेवाड़ा के एक छोटे से ग्राम टेकनार के रहने वाले श्री जयपाल नाग एक प्रगतिशील किसान हैं। 3-4 वर्ष पूर्व में परंपरागत रीति से कृषि कार्य करते थे। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी। मिला उद्यानिकी विभाग का मार्गदर्शन  उद्यानिकी विभाग के कर्मचारियों के मार्गदर्शन में उन्होंने परंपरागत कृषि को छोड़कर आधुनिक उन्नत पद्धति से उद्यानिकी फसल लगाने लगे सर्वप्रथम उद्यान विभाग के राज्य पोषित योजना अंतर्गत है 6 किसानों के समूह में सामुदायिक स्पेसिंग 4 हेक्टेयर में चौन लिंक फेंसिंग कराया।  राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से भी हुए लाभान्वित:-  राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से केला प्रदर्शन एवं क्षेत्र विस्तार से प्रारंभ किया, जिससे अच्छी आमदनी अर्जित कर अपनी जीवन शैली ही बदल डाली। उन्होंने उद्यानिकी फसल से दोपहिया और ट्रैक्टर खरीद लिए जिससे कृषि कार्य में सुविधा उपलब्ध हुई। वर्ष 2020-21 में फसल परिवर्तन कर मिर्च की खेती एवं पद्धति से 6 एकड़ में कर रहा हैं प्रथम चक्र फसल तुड़ाई में 5 हजार किलोग्राम प्राप्त हुई है जिसे 80 प्रति किलो की

जैविक खेती:-कृषि विभाग की सक्रियता से खरसिया में बन रही श्रेष्ठ जैविक खाद

    जैविक खेती :- कृषि विभाग की सक्रियता से खरसिया में बन रही श्रेष्ठ जैविक खाद अन्य जिलों के गौठान समूह ले रहे प्रशिक्षण कृषि कार्य में रासायनिक खादों के उपयोग को कम करने एवं महिला स्वावलंबन को बढ़ावा देने हेतु गौठानों में केंचुआ खाद का उत्पादन किया जा रहा है। वहीं रायगढ़ जिले के खरसिया ब्लॉक की ग्राम पंचायत लोढ़ाझर के गौठान में जिले भर में सर्वाधिक एवं सर्वश्रेष्ठ जैविक खाद उत्पादन किया जा रहा है। उल्लेखनीय यह भी होगा कि अन्य जिलों से भी लोग ग्राम लोढ़ाझर पहुंचकर उत्पादन के गूढ़ बिंदुओं का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। बुधवार को नजदीकी जिले जांजगीर-चाम्पा से प्रत्येक गौठन के समूह से दो-दो सक्रिय सदस्य ग्राम लोढ़ाझर पहुंचे। इस दल का नेतृत्व डभरा ब्लॉक के सीईओ राधेश्याम नायक, वरिष्ठ कृषि अधिकारी देवांगन तथा गौठानों के प्रभारी व सरपंच द्वारा किया गया। वहीं कार्यक्रम का संयोजन नोडल अधिकारी डोमेश चौधरी द्वारा किया गया। खरसिया ब्लॉक के वरिष्ठ कृषि अधिकारी जन्मेजय पटेल के द्वारा गौठान में केंचुआ उत्पादन का प्रशिक्षण देते हुए बारीकियां समझाई गईं। वहीं वर्मी-वाश एवं वेस्ट डी कंपोजर की महत्ता बताई