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Showing posts from April, 2021

खेती-बाड़ी:-जिमीकन्द(सूरन)की खेती कर देगी किसान को मालामाल

  खेती-बाड़ी:-जिमीकन्द (सूरन) की खेती कर देगी किसान को मालामाल जिमीकंद या सूरन एक भूमिगत कंद है| जो इसकी उपज क्षमता तथा पाक गुणों के कारण लोकप्रिय हो रहा हैं| उच्च उपज, गैर-तीखेपन वाले किस्मों के प्रवेश के कारण इसे पूरे भारत में व्यावसायिक उत्पादन हेतु अपनाया जा रहा हैं| यह कार्बोहाइड्रेट और खनिजों जैसे कैल्शियम और फॉस्फोरस से समृद्ध हैं| बवासीर, पेचिश, दमा, फेफड़ों की सूजन, उबकाई और पेट दर्द के रोकथाम हेतु अनेक आयुर्वेदिक दवाओं में इन कंदों का उपयोग किया जाता हैं| यह रक्त शोधक का कार्य भी करता हैं|      आज की कड़ी में हम जानेंगे जिमीकन्द की वैज्ञानिक खेती के बारे में। जिमीकंद खेती की तैयारी का समय आ चुका है अतः किसान भाई खेत की तैयारी शुरू कर दे वे इसके लिए सर्वप्रथम अपने खेत में जितना भी बायोमास पड़ा हुआ है बायोमास से मेरा तात्पर्य पिछली फसल अवशेष से है इस बायोमास को किसान भाई भूल कर भी ना जलाएं फसल अवशेष को जलाने से खाद नहीं बनता बल्कि हमारे खेतों के जैविक कार्बन सब जल जाते हैं मित्र बैक्टीरिया जो फसल उत्पादन में सहायता करते हैं सब मर जाते हैं और कुछ गिने-चुने केंचु...

कृषि:-ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई से कीटनाशक के पैसे बचा सकते है किसान।

  कृषि :- ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई से कीटनाशक के पैसे बचा सकते है किसान। रबी की फसल कटने के बाद किसान अपने खेत की गहरी जुताई कर दें, ताकि कम लागत में अधिक उत्पादन मिल सके। कतार में फसलों की बुवाई, फसल चक्र, सहफसली खेती, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करने से कम लागत में अधिक उत्पादन मिलता है। रबी की फसलों की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई खरीफ की फसल के लिए भी लाभदायक है। ग्रीष्मकालीन जुताई मई और जून में मानसून आने से पहले की जाती है। इस जुताई से अनेक फायदे होते हैं। गहरी जुताई से जल, वायु और मिट्टी का प्रदूषण कम होता है।  मिट्टी में सुधार होता है और मिट्टी में पानी धारण करने की क्षमता बढ़ती है। खेत की कठोर परत को तोड़कर मिट्टी को जड़ों के विकास के अनुकूल बनाने के लिए ग्रीष्मकालीन जुताई लाभदायक होती है। जुताई से खेत में उगे खरपतवार और फसल अवशेष मिट्टी में दबकर सड़ जाते हैं, जिससे मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़ जाती है। ज्यादातर किसान बुवाई से पहले ही खेत की जुताई करते हैं, जिससे फसल तो अच्छी हो जाती है, लेकिन खेत की मिट्टी में कई तरह के कीट, रोगाणु और खरपतवार बने रहते हैं, ऐसे में कि...

#काफल #उत्तराखंडी_फल

  #काफल #उत्तराखंडी_फल ■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ ये फल मध्य हिमायली इलाकों में बहुतायत से पाया जाता है। उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाने वाला ये सदाबहार पेड़ होता है जिस पर गर्मियों के दिनों में बेहद ही स्वादिष्ट फल लगता है।  इस फल की गुणवत्ता बहुत है। ये ज्यादातर विटामिन से भरा होता है। इसमें आयरन भी भरपूर होता है।  ये पहाड़ी फल एंटी ऑक्सीडेंट से भरा होता है। खट्टाऔर मीठे स्वाद के इस फल के जूस में डायजेशन से जुड़ी सारी ही बीमारी को ठीक करने के गुण होते हैं।  इस फल में कई तरह के प्राकृतिक तत्व पाए जाते हैं। जैसे माइरिकेटिन, मैरिकिट्रिन और ग्लाइकोसाइड्स इसके अलावा इसकी पत्तियों में फ्लावेन -4-हाइड्रोक्सी-3 पाया जाता है। यदि आपके पास भी काफल से जुड़ी कोई जानकारी हो तो अवश्य साझा करें।

#पिप्पली या मघ

#पिप्पली या मघ .. Pippali (Piplamool) Long pepper ■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ आयुर्वेद में इसका बहुत प्रयोग होता है जिसके चलते मघ की कीमत 600₹ किलोग्राम तक है. अमूमन एक वर्ष की बेल में 200 ग्राम मघ कम से कम लग जाती है और बेल की उम्र के साथ अधिक होती रहती है। पाइपरेसी परिवार का पुष्पीय पौधा है। इसकी खेती इसके फल के लिये की जाती है। इस फल को सुखाकर मसाले, छौंक एवं औषधीय गुणों के लिये आयुर्वेद में प्रयोग किया जाता है। इसका स्वाद अपने परिवार के ही एक सदस्य काली मिर्च जैसा ही किन्तु उससे अधिक तीखा होता है। इस परिवार के अन्य सदस्यों में दक्षिणी या सफ़ेद मिर्च, गोल मिर्च एवं ग्रीन पैपर भी हैं। इनके लिये अंग्रेज़ी शब्द पैपर इनके संस्कृत एवं तमिल/मलयाली नाम पिप्पली से ही लिया गया है। यह एक आयुर्वेदिक औषधी है जो कि अपने विशेष गुणों के कारण विभिन्‍न प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने के लिए पारंपरिक दवाओं में उपयोग की जाती है। पीपली का उपयोग मधुमेह के फायदेमंद होता है, क्‍योंकि यह रक्‍त में चीनी (Blood sugar) के स्‍तर को नियंत्रित करने में मदद करती है। इसके साथ ही यह मोटापा, जिगर की समस्...

गोरख_इमली

#गोरख_इमली #खुरासानी_इमली ■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ अगर आप इन्हें #आम समझ रहे हैं तो गलती कर रहे हैं,,, ये हैं मांडव की इमली,,, मांडवगढ़ में इनके सैकड़ो वृक्ष हैं,, कुछ पेड़ तो इतने मोटे हैं कि उनको तने के अंदर से खोखला करके अंदर दो-चार आदमी के रहने लायक #रूम बनाया जा सकता है,, पहले कुछ लोगों ने ऐसा किया भी है,,,आज भी अफ्रीका में वनवासी यही करते हैं,, यहाँ #मांडवगढ़ में सैकड़ो #वनवासी महिलाएं टोकरियों में ये इमलियाँ और अलग से निकालकर इनके बीज बेचती दिखाई दे जाएंगी,,, कुछ जगहों पर #खुरासानी इमली भी कहते है,, हठयोग के आचार्य गुरु गोरखनाथ जी योग ध्यान का प्रचार करने के लिए अफ्रीका तक गए थे,, वहां के वनों में इसकी बहुतायत है,, वहीं से वे इसके बीज लेकर आए और मांडवगढ़ में बिखेर दिए,,इसीलिए इसे #गोरखइमली भी कहा जाता है,,, नाथ सम्प्रदाय के साधु सिद्धि के लिए गोरखइमली के वृक्षों के नीचे साधना करते हैं,,,जो तीव्र फलदायी होती है,, अद्भुत है ईश्वर की बनाई सृष्टि भी,,,

गुच्छी #मशरूम: ₹30000 किलो बिकने वाला यह मशरूम का ज़ायका बेहद #लज़ीज़ होता है!

#गुच्छी #मशरूम: ₹30000 किलो बिकने वाला यह मशरूम का ज़ायका बेहद #लज़ीज़ होता है! #मार्कुला_एस्क्यूपलेंटा यूं तो #दुनिया में बहुत सी #वैरायटी के मशरूम हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा गुच्छी मशरूम की हो रही है मशरूम दो तरह के होते हैं एक नॉर्मल जिसमें आमतौर पर बटन मशरूम होते हैं जबकि दूसरा मेडिसिनल पर्पज वाले जिसमें गुच्छी जैसी मशरूम की प्रजातियां शामिल हैं. इसे स्थानीय भाषा में गुच्छी नाम से जाना जाता है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत काफी ज्यादा है. जानकार बताते हैं कि यह #मधुमक्खी के छत्ते जैसी टोपी के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है. सेन्ट्रल एवं वेस्टर्न हिमालयी क्षेत्र के स्थानीय लोग इस मशरूम का इस्तेमाल कई सालों से #स्वास्थ्यवर्धक आहार के रूप करते आ रहे हैं. लैटिन भाषा में इसे #मोर्सेला एस्कुलेन्टा या मोरेल मशरूम के नाम से जाना जाता है. यह मशरूम #हिमांचल प्रदेश, #उत्तराखंड के उच्च #हिमालयी #क्षेत्रों में खुद ही उगते हैं. वहीं कुमाऊ की दारमा #घाटी, #गढ़वाल की नीती घाटी में यह मशरूम मार्च में उगते हैं और अप्रैल एवं जून के महीने में स्थानीय लोग इन्हें तोड़ना शुरू कर देते हैं. यह #कश्...

#ब्रेड फ्रूट ट्री

#ब्रेड फ्रूट ट्री कटहल का छोटा भाई दिखने वाला यह फल है ब्रेड फ्रूट ट्री  इसके फल को पकाने के बाद इसमें से ताजी रोटी जैसी गंध आती है और स्वाद भी रोटी जैसा और पौष्टिक होता है इसीलिए इसको ब्रेड फ्रूट ट्री कहा जाता है । ■यह एक उष्णकटिबंधीय पेड़ है जो भारत , दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत महासागर के कुछ द्वीपों , कैरेबियन द्वीपों और अफ्रीका में भी पाया जाता है । ■इस वृक्ष पर बड़े-बड़े फल लगते हैं जिनका आकार एक हैंड बाल के बराबर तक हो जाता है । ■फल लगभग सारे साल ही लगते रहते हैं और पकने के बाद खाने योग्य हो जाते हैं । इसके पेड़ की ऊंचाई १० से २० मीटर तक होती है। ■ हरेक सीजन में इसके पेड़ से लगभग २०० फल प्राप्त किए जा सकते हैं । फल देखने में गोल और बाहर से कटहल जैसे लगते हैं । ■इस पेड़ की विशेषता है कि इसकी लकड़ी पर दीमक नहीं लगती और भार में हल्की भी होती है । इस विशेषता के कारण इसकी लकड़ी से नाव बनाई जाती हैं आपको भी इस पेड़ के बारे में जानकारी हो तो अवश्य साझा करें।

समसामयिक सलाह- वैज्ञानिकों ने दी किसानों को मौसम आधारित कृषि करने की सलाह

समसामयिक सलाह - वैज्ञानिकों ने दी किसानों को मौसम आधारित कृषि करने की सलाह ग्रीष्मकालीन धान, दलहन व तिलहन फसलों में होने वाले रोग और ब्याधि के नियंत्रण के बताए उपाय राज्य के कृषि मौसम विभाग के वैज्ञानिकों ने प्रदेश के किसानों को मौसम आधारित कृषि की सलाह दी है। ग्रीष्मकालीन धान, दलहन, तिलहन, मूंगफली, गन्ना फसल एवं सब्जियों में होने वाले रोग-ब्याधि के नियंत्रण तथा फसलों के देखभाल के बारे में कई उपयोगी सुझाव दिए हैं।  कृषि वैज्ञानिकों ने कहा है कि वर्तमान समय में ग्रीष्मकालीन धान पुष्पन अवस्था में है। आने वाले दिनों में हल्के बादल छाए रहने की संभावना को ध्यान में रखते हुए धान की फसल में तना छेदक कीट का प्रकोप बढ़ सकता है, अतएव इसकी सतत् निगरानी एवं आवश्कतानुसार सिंचाई करें। ग्रीष्मकालीन धान की फसल में तना छेदक कीट के नियन्त्रण हेतु रायनेक्सीपार 20 प्रतिशत SC 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर या फिपरोनिल 5 प्रतिशत SC @ 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। दलहन फसलों में आने वाले दिनों में हल्के बादल छाए रहने की संभावना को ध्यान में रखते हुए थ्रिप्स कीट की उपस्थिति की जाँच करें। तिल...

उद्यानिकी फसल-खीरा में एन्थ्रेक्नोज रोग का प्रबंधन

  उद्यानिकी- खीरा में एन्थ्रेक्नोज रोग का प्रबंधन डॉ गजेंन्द्र चन्द्राकर  वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर खीरे की एक उच्च गुणवत्ता की फसल बढ़ने के लिए -काम आसान नहीं है! वनस्पति के लिए इष्टतम रखरखाव प्रदान करने के अलावा, उन रोगों की घटना को रोकने के लिए आवश्यक है जो एक ही क्षण में अपेक्षित उपज को नष्ट कर सकते हैं।  आज कड़ी में हम खीरे में लगने वाले रोग एंथ्रेक्नोज के बारे में बात करेंगे। गर्म एवं उच्च आर्द्रता एन्थ्रेक्नोज के लिए अनुकूल होती हैं | एन्थ्रेक्नोज आमतौर पर फसल की मध्य अवस्था में आता हैं यदि स्थिति अनुकूल हो तो रोग अधिक नुकसान कर सकता हैं| पानीदार घाव पत्ती पर दिखाई देते हैं, जो बाद में पीले हो जाते हैं और अनियमित आकार के धब्बे बन जाते हैं। यह धब्बे बाद में गहरे भूरे या काले हो जाते हैं| फलों के ऊपर गोल, काले गड्ढे जैसे धब्बे दिखाई देते हैं| प्रबंधन के उपाय 👉 बीमारी आने से पूर्व बचाव हेतु:- नीम का तेल 1000 पीपीएम @ 600 मिली प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ का छिड़काव दो बार करे । 🛑 जैविक नियंत्रण :- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 200 ग्...

कीट नियंत्रण:-धनिये को माहू कीट से ऐसे बचाएं

*  कीट नियंत्रण:-धनिये को माहू कीट से ऐसे बचाएं * दिन में गर्मी और रात में मौसम ठंडा होने से  धनिया  की फसल में  माहू  कीट ने हमला बोल दिया है। कृषि वैज्ञानिक का मानना है कि समय रहते बचाव नहीं किया गया तो फसल नष्ट हो सकती है।  माहू धनिये की सभी फसल अवस्थाओं मे नुक्सान पहुँचाता है| इसके वयस्क एवं निम्फ दोनों ही यह पत्ती से रस को चूसते है जिस कारण पत्तियाँ मुड़ने लगती है| पौधा कमज़ोर हो जाता हैं पत्तियों की गुणवत्ता कम हो जाती हैं|  प्रबंधन के उपाय:- ■फसल चक्र अपनाएँ| ■अनुशंसित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करें। ■जो पौधे ज्यादा प्रभावित हो उन्हें उखाड़ के नष्ट कर दे| ■प्रति एकड़ 10 नीले एवं पीले चिपचिपे प्रपंच स्थापित करें ■आने से पूर्व बचाव हेतु :- नीम का तेल 1000 पीपीएम @ 600 मिली प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ का छिड़काव दो बार करे ।  जैविक नियंत्रण :- बेवेरिया बासियाना @ 1 किलो + मेट्रिहिज़ियम ऐनिसोपला 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ में मिलाकर छिड़काव करें।  रासायनिक नियंत्रण:-  निम्न में से किसी एक कीटनाशक का स्प्रे करें। इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. @ 100 मिली/एकड़ या थायो...

खरीफ बीज:-इन दरों पर उपलब्ध होगा खरीफ वर्ष 2021-22 में कृषको को बीज

  खरीफ बीज:-इन दरों पर उपलब्ध होगा खरीफ वर्ष 2021-22 में कृषको को बीज छत्तीसगढ़ राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम लिमिटेड (छ. ग. शासन का उपक्रम) बीज भवन जी ई रोड तेलीबांधा ने जारी की खरीफ वर्ष 2021 में अनाज,दलहन एवं तिलहन बीजो की विक्रय दर जो कि निम्नानुसार है। प्रचारक हम कृषकों तक तकनीक पहुंचाते हैं।

कीट नियंत्रण:-लौकी में सफ़ेद मक्खी का नियंत्रण

* 🔴 लौकी में सफ़ेद मक्खी का नियंत्रण * 🔰 सफ़ेद मक्खियां फुल एवं फल बनने की अवस्था के दौरान दिखाई देती हैं| इससे फसल की पैदावार 75% तक कम हो सकती हैं | 🔰 शिशु एवं वयस्क पत्तियों की सतह से रस चूसते हैं| पत्तियाँ मुड़ने एवं सूखने लगती हैं| पौधे की बढ़वार रुक जाती हैं| इसके छोड़े गए मधुस्त्राव के कारण पौधों पर काली फफूंद आती हैं | 🔰 नियंत्रण:- सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ 10 नीले एवं पीले चिपचिपे प्रपंच स्थापित करें| 🔰 आने से पूर्व बचाव हेतु :- नीम का तेल 1000 पीपीएम @ 600 मिली प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ का छिड़काव दो बार करे । 🔰 जैविक नियंत्रण:- बेवेरिया बासियाना @ 1 किलो + मेट्रिहिज़ियम ऐनिसोपला 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ में मिलाकर छिड़काव करें। 🔰 रासायनिक नियंत्रण:- निम्न में से किसी एक कीटनाशक का स्प्रे करें। इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. @ 100 मिली/एकड़ या थायोमेथोक्सोम 25 डब्लूजी @ 75 ग्राम/ एकड़ या एसीटामाप्रीड 20% SP 100 ग्राम 200 लीटर पानी प्रति एकड़ में मिलाकर छिड़काव करें। 🔰 छिड़काव शाम के समय ही करें|