भारत में धान की खेती और पैदावार दोनों बड़े पैमाने पर की जाती है. इसका मुख्य कारण यह है कि भारत के कई इलाकों में धान की खपत बहुत ज्यादा है. ऐसे में घान की खेती इन इलाकों में बहुतायत में की जाती है. धान की खेती को चावल की खेती के रूप में भी जाना जाता है. पूरे देश में यह व्यापक रूप से प्रचलित है और देश में सबसे महत्वपूर्ण कृषि फसलों में से एक है. चावल की खेती करने वाले राज्यों की सूची में पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और असम शामिल है. ये राज्य मिलकर भारत में धान की अधिकांश खेती में अपना अहम योगदान देते हैं.
हालांकि, चावल भारत के अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में भी उगाया जाता है. भारत में धान की खेती का विशिष्ट स्थान और सीमा जलवायु, मिट्टी के प्रकार, पानी की उपलब्धता और अन्य स्थानीय परिस्थितियों जैसे कारकों के आधार पर अलग-अलग हो सकती है।
1. अपने क्षेत्र के अनुसार करें किस्म का चयन
धान की किस्म को क्षेत्र के हिसाब से विकसित किया गया है। किसानों को चाहिए कि वे अपने क्षेत्र और प्रदेश के अनुसार किस्म का चयन करें तभी अच्छी पैदावार मिलेगी।
स्वर्णा: यह भारत में उगाई जाने वाली एक लोकप्रिय किस्म है, जो अपनी उच्च उपज और अनाज की अच्छी गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. धान की यह किस्म ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदा में भी 15 दिन खेतों में खड़ी रह सकती है. स्वर्ण शक्ति धान उगाने पर कम खर्च और कम पानी में अच्छी उपज प्राप्त होती है. यह मध्यम अवधि की किस्म है जो 115-120 दिनों में पक जाती है. एक हेक्टेयर खेत से 45-50 क्विंटल स्वर्ण शक्ति धान का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.
सांभा मासुरी: यह किस्म दक्षिण भारत में लोकप्रिय है और इसकी उच्च उपज, अनाज की अच्छी गुणवत्ता और कीटों और रोगों के प्रतिरोध क्षमता के लिए जानी जाती है. वहीं इस किस्म को तैयार होने में 110 दिन का समय लगता है.
IR 64: यह दुनिया के कई हिस्सों में व्यापक रूप से उगाई जाने वाली किस्म है और इसकी उच्च उपज, अनाज की अच्छी गुणवत्ता और कीटों और रोगों के प्रतिरोध के लिए जाना जाता है. आइआर-64 को अपग्रेड कर आइआर-64 डीआरटी-1 धान का बीज तैयार किया गया है. इसका दाना लंबा लेकिन पौधा छोटा होता है. 120 से 125 दिनों में यह पककर तैयार हो जाती है. उत्पादन प्रति हेक्टेयर 50 से 55 क्विंटल होता है.
MTU 1010: यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित उच्च उपज वाली किस्म है और भारत के कई हिस्सों में लोकप्रिय है. इसका दाना और पौधा छोटा होता है. यह 110 से 115 दिनों में पकने के बाद तैयार हो जाती है. इस किस्म का उत्पादन 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है.
2. बीजों का शोधन करने से नहीं लगेगा रोग
फफूंदनाशी से बीजोपचार प्रति किलो बीज को 3 ग्राम बैविस्टिन फफूंदनाशक से उपचारित करें। फफूंदनाशक का उपयोग पाउडर के रूप में धुले हुए बीज में मिलाकर कर सकते हैं या फिर 3 ग्राम प्रति किलो बीज को पानी में मिलाकर उपचारित करें।
3. श्री विधि से करेंं धान की रोपाई
एसआरआई विधि (श्रीविधि) से रोपाई करते समय एक जगह पर एक से दो पौधों की ही रोपाई करनी चाहिए। पौधे से पौधे और कतार से कतार के बीच की दूरी 25 सेमी. रखनी चाहिए।
4. अधिक कल्ले पाने के लिए करें ये काम
धान की रोपाई के 20-30 दिन बाद कल्ले फूटने लगते हैं। इस दौरान प्रति एकड़ 20 किलो नाइट्रोजन और 10 किलो जिंक की मात्रा जरूर दें। जिंक की मात्रा आप धान की रोपाई के समय भी दे सकते हैं। इससे कल्ले अधिक मिलेंगे। इस दौरान धान की खेत में ज्यादा पानी न रखें।
5. रोपाई के बाद खेत में पाटा चलाएं, कीटों से मिलेगी मुक्ति
धान की रोपाई के 15-20 दिनों बाद खेत में पाटा चलाएं। ऐसा करने से धान के पौधों पर लगने वाले सुंडी जैसे कीड़े भी पानी में गिरते ही मर जाते हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि एक बार पाटा लगाने के बाद दूसरी बार उल्टी दिशा में पाटा लगाएं। जब भी पाटा लगाएं खेत में पर्याप्त मात्रा में पानी होना चाहिए।
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