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Showing posts from 2022

रामदाना : दुनिया का सबसे पुराना अनाज जो चावल- गेहूं और मक्के से कई गुना अधिक फायदेमंद है।

   रामदाना : दुनिया का सबसे पुराना अनाज जो चावल- गेहूं और मक्के से कई गुना अधिक फायदेमंद है। #आवाज_एक_पहल दुनिया का सबसे पुराना अनाज रामदाना अब तो भूले-बिसरे ही याद आता हैं । उपवास के लिए लोग इसके लड्डू और पट्टी खोजते हैं. पहले इसकी खेती का भी खूब प्रचलन था. मंडुवे यानी कोदों के खेतों के बीच-बीच में चटख लाल, सिंदूरी और भूरे रंग के चपटे, मोटे गुच्छे जैसे दिखने वाली फसल चुआ (चौलाई) होती थी जिसके पके हुए बीज रामदाना कहलाते हैं. जब पौधे छोटे होते थे तो वे चौलाई के रूप में हरी सब्जी के काम आते थे. तब पहाड़ों में मंडुवे की फसल के साथ चौलाई उगाने का आम रिवाज था. यह तो शहर आकर पता लगा कि रामदाना के लड्डू और मीठी पट्टी बनती है. पहाड़ में रामदाना के बीजों को भून कर उनकी खीर या दलिया बनाया जाता था. एक बार, नाश्ते में रामदाने की मुलायम और स्वादिष्ट रोटी खाई थी. रोटी का वह स्वाद अब भी याद है. अब तो पहाड़ में भी खेतों में दूर-दूर तक चौलाई के रंगीन गुच्छे नहीं दिखाई देते हैं. गेहूं, धान और मक्का से भी श्रेष्ठ रामदाना पौष्टिकता की लिहाज से रामदाने के दानों में गेहूं के आटे से दस गुना अधिक कैल्शियम, ती

छत्तीसगढ़ की चाय की महक पूरे देश भर में फैल रही है, जशपुर के चाय बागानों की चर्चा

  छत्तीसगढ़ की चाय की महक पूरे देश भर में फैल रही है, जशपुर के चाय बागानों की चर्चा। चाय पीने वालों की दुनिया में असम या दार्जिलिंग की चाय का नाम ही काफी है। कुछ ऐसा कि बड़ी-बड़ी कंपनियां भी प्रचार में यह बताना नहीं भूलतीं कि उनकी चाय सीधे असम के चाय बागानों से लाई गयी है। लेकिन अगर वही ताजगी आपको मनोरमा, लावा, मधेश्वर, वन देवी और सारूडीह चाय में मिलने लगे तो! पढ़कर थोड़ी हैरानी होगी पर ये सब असम चाय की ही किस्में हैं जिन्हें छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और हरियाली की चादर ओढ़े सुंदर पठारों से घिरे जशपुर जिले में उगाया जा रहा है। इनके नाम भी इसी जिले से उठाए गए हैं। जैसे मनोरमा, लावा, मधेश्वर और वन देवी- जशपुर से गुजरने वाली चार नदियां हैं तो सारूडीह वहां का एक गांव जहां चाय की खेती होती है। छत्तीसगढ़ राज्य अपनी धान की दुर्लभ प्रजातियों के लिए विश्व में प्रसिद्ध है. बड़े पैमाने पर धान की खेती होने के कारण राज्य को धान का कटोरा कहा जाता है. प्राकृतिक संपदा से भरपूर प्रदेश में नदियां, जंगल, पहाड़ और पठार भी काफी भू-भाग में हैं. इनमें पठारी भूमि में धान का उत्पादन नहीं हो पाने के कारण अर्थव्यवस्था में उ

ब्रोकली की एक एकड़ की खेती से महज 3 महीने में हो जाती है तीन लाख तक की आमदनी ।समान्य गोभी के मुकाबले ज्यादा लाभकारी है इसकी खेती।

ब्रोकली की एक एकड़ की खेती से महज 3 महीने में हो जाती है तीन लाख तक की आमदनी ।समान्य गोभी के मुकाबले ज्यादा लाभकारी है इसकी खेती। ब्रोकली गोभी के प्रजाति का ही सब्जी है। यह लोकप्रियता के मामले में सामान्य गोभी के आसपास भी नहीं है पर इसकी खेती में गोभी की खेती के वनिस्पत ज्यादा आमदनी हैं ।महज एक एकड़ के खेती से किसान भाई सिर्फ 3 महीने में एक लाख से ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। ब्रोकली स्वास्थ वर्धक गुणों का भंडार है। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, विटामिन ए, सी और कई दूसरे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें कई प्रकार के लवण भी पाए जाते हैं जो शुगर लेवल को संतुलित बनाए रखने में मददगार साबित होते हैं. ब्रोकली देखने में भी काफी हद तक गोभी के जैसी ही लगती है. आप चाहें तो इसे सलाद के रूप में, सूप में या फिर सब्जी के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. कुछ लोग इसे भाप से पकाकर खाना भी पसंद करते हैं. इसके बीज व पौधे देखने में लगभग फूलगोभी की तरह ही होते हैं। फूलगोभी में जहां एक पौधे से एक फूल मिलता है वहां ब्रोकोली के पौधे से एक मुख्य गुच्छा काटने के बाद भी, पौधे से कुछ

अमरू की खेती कर किसान हो सकते हैं मालामाल जानिए क्या हैं अमरू ?

  अमरू की खेती कर किसान हो सकते हैं मालामाल जानिए क्या हैं अमरू ? किसानों को मालामाल और खाने में लाजवाब स्वाद देने वाले इस पौधे को इंग्लिश में #रोजेला' कहा जाता है, जो हिबिस्कस ग्रुप का मालवेसिस फैमिली का पौधा है. इसकी खेती मुख्य रूप से खरीफ के सीजन में की जाती है. हालांकि, ये लोकल या फिर स्थानीय भाषा में 'अमरू' या अमारी फूल के नाम से प्रचलित है। अमरू जितना खूबसूरत है उतना ही लाजवाब. इसलिए अधिकतर ग्रामीण इसकी चटनी बड़े चाव से खाते हैं. इसे आम का रिप्लेसमेंट भी माना जाता है, जो स्वाद में खट्टा होता है. कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि यह फाइबर क्रॉप में आता है.  अमरू का पूरा पौधा काम का होता है. इसके फूल का क्लेक्स खाया जाता है. वहीं पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है. साथ ही अचार भी बनाया जाता है. इस पौधे की खास बात ये है कि, विटामिन और मिनरल्स इसमें काफी प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं. औषधीय महत्व का पौधा अमरू का पौधा औषधीय महत्व का है. इसमें विटामिन और मिनरल्स काफी मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें मुख्य रूप से कई औषधीय गुण हैं, जो शरीर में एक्सेस वाटर फैट को निकालने का काम करता है. स

CVR soil टेक्नीक - मिट्टी से फसल में कीट और पौषण प्रबंधन

CVR soil टेक्नीक - मिट्टी से फसल में कीट और पौषण प्रबंधन  यह बात सुनने में कोई भरोसा नहीं करेगा कि अपने ही खेत की मिट्टी को पानी में मिलाकर छिड़काव करने से हम अपनी फसल में कीट नियंत्रण और पौषण प्रबंधन दोनों कर सकते हैं!  है न कमाल की बात!!  और यह बात सिद्ध की है CVR soil टेक्नीक ने!  CVR soil तकनीक क्या है? इस तकनीक की खोज हैदराबाद के श्री चिंतला वेंकट रेड्डी ने की है। CVR का फुल फार्म "चिंतला वेंकट रेड्डी" है। डाॅ. रेड्डी को कृषि संबंधित अपनी खोज के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है।  CVR soil तकनीक में दो तरह की मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। पहली है जमीन की उपरी सतह की तीन ईंच गहराई तक की मिट्टी जिसे  top soil कहा है और दूसरी है जमीन की उपरी सतह से तीन फिट से नीचे की मिट्टी जिसे sub soil कहा है। इन दोनों तरह की मिट्टीयों को पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव किया जाता है।  पहले खेत की उपरी सतह से तीन इंच की मिट्टी top soil 15 किलो एक तगारी में इकठ्ठा करते हैं। फिर तीन फिट गहरा गड्ढा खोदकर तीन फिट से नीचे की मिट्टी sub soil 15 किलो दूसरी तगारी में निकलते हैं। फिर इन दोनों त

सफलता की कहानी:-रागी की खेती से बढ़ी बोतल्दा के कृषक बोधीलाल पटेल की आमदनी

सफलता की कहानी:-रागी की खेती से बढ़ी बोतल्दा के कृषक बोधीलाल पटेल की आमदनी 5711.00 रु. प्रति क्विंटल की दर से कुल 6,30,000 रु. भुगतान राशि प्राप्त हुई | कृषक श्री बोधीलाल पटेल पिता स्व.श्री मनीराम पटेल ग्राम - बोतल्दा, विकासखण्ड - खरसिया, जिला- रायगढ़ (छ.ग.) का निवासी है| ग्राम- बोतल्दा खरसिया- सक्ती मुख्य मार्ग में नेशनल हाईवे से लगा हुआ है | कृषक के पास कुल 14.00 हेक्टेयर जमीन है | जिन पर मेरे द्वारा वर्ष 2020-21 में खरीफ़ में धान की खेती तथा रबी में 2 हेक्टेयर में, सरसों, उड़द, मूंग,हल्दी, अरबी एवं सब्जी की खेती तथा 4 हेक्टेयर में गेंहूँ की खेती की गयी थी जिससे मुझे गेहूं फसल से औसतन उपज 30 क्विंटल प्रति हे. के हिसाब से कुल 120 क्विंटल उपज प्राप्त हुआ | जिसका मुझे 1700 रु. प्रति क्विंटल की दर से कुल 2,04,000 रु. प्राप्त हुई | कृषि विभाग खरसिया द्वारा आयोजित प्रशिक्षण मिलेट मिशन (रागी क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम) से प्रेरित होकर रबी वर्ष 2021-22 में मैंने 4 हेक्टेयेर रकबा में गेंहूँ के बदले रागी की 2 हेक्टेयेर क्षेत्र में रोपा एवं 2 हेक्टेयेर क्षेत्र में छिड़कावा विधि से खेती प्रारंभ किया

धनिया की वैज्ञानिक खेती

धनिया की वैज्ञानिक खेती प्राचीन काल से ही विश्व में भारत देश को ''मसालों की भूमि'' के नाम से जाना जाता है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते हैं। धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण होने के कारण कुलिनरी के रूप में, कार्मिनेटीव और डायरेटिक के रूप में उपयोग में आते हैं। धनिया अम्बेली फेरी या गाजर कुल का एक वर्षीय मसाला फसल है। इसका हरा धनिया सिलेन्ट्रो या चाइनीज पर्सले कहलाता है। उपयोग एवं महत्व धनिया एक बहुमूल्य बहुउपयोगी मसाले वाली आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी फसल है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते हैं। धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण होने के कारण कुलिनरी के रूप में, कार्मिनेटीव और डायरेटिक के रूप में उपयोग में आते हैं। भारत धनिया का प्रमुख निर्यातक देश है। धनिया के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है। जलवायु शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिये अनुकूल होता है। बीजों के अंकुरण के लिये 25 से 26 से.ग्रे. तापमान अच्छा होता है। धनिया शीतोष्ण जलवायु की फसल होने के कारण फूल

इन 5 टिप्स का ख्याल रखकर किसान एकड़ की नींबू की खेती से 5 लाख की आमदनी ले सकते हैं।

  इन 5 टिप्स का ख्याल रखकर किसान एकड़ की नींबू की खेती से 5 लाख की आमदनी ले सकते हैं। नींबू में कई तरह के औषधीय गुण से हम आप परिचित हैं लेकिन नींबू का फसल किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है. इसे कैश क्रॉप के रुप में किसान करते हैं आजकल तो दिल्ली आस पास के इलाके में किसान अपने पारंपरिक खेती को छोड़ नींबू की खेती करने लगे है. अब देश के महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आंध्रप्रदेश, तेलांगाना, बिहार,पंजाब, हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेस और राजस्थान के साथ साथ अब तो दिल्ली के आसपास के इलाकों में भी खूब उत्पादन हो रहा हैं। नींबू की फसल एक एकड़ में तकरीबन 300 पौधे लगाते हैं. यह पौधे हमें तीसरे साल से नींबू देने लगते हैं. इन पौधों में एक साल में तीन बार खाद डाला जाता है. आमतौर पर फरवरी, जून और सितंबर के महीनों में ही खाद डालते हैं. पेड़ जब पूरी तरह तैयार हो जाते हैं तो एक पेड़ में 20 से 30 किलों तक नींबू मिल जाते है।  जबकि मोटे छिलके वाले नींबू की उपज 30 से 40 किलों तक हो सकती है.लेकिन उसकी कीमत कम होती है आढती अचार बनाने के लिए ले जाते हैं महिंदर बताते हैं कि उनके खेत से तो व्यापारी 30 से 40 रुपये किलो के

रामबांस के है कमाल के फायदे पढ़ कर रह जाएंगे, दंग

  रामबांस के है कमाल के फायदे पढ़ कर रह जाएंगे रामबांस को हम रामबाण कहते हैं,, वही कुछ लोग इसे खेतकी भी कहते हैं,, एक समय था जब रामबांस के पत्तो से गेंहू के पुले बांधे जाते थे,पर कुछ वर्षों में ऐसी स्थिति बदली की रामबांस देखने को भी नही मिलता.... बहुत समय से छत्तीसगढ़ एवम मध्यप्रदेश के वन विभाग द्वारा वनों को पशुओं से बचाने हेतु निर्मित कैटल प्रोटेक्शन ट्रेंच की मेड़ो में रामबांस को रोपित किया जाता है यह काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। पुराने समय मे पशुओं और जंगली जानवरों से सुरक्षा एवं भूमि के कटाव को रोकने हेतु खेत की मेड़ों पर रामबांस लगाया जाता था सम्भवतः इसी कारण ईसे खेतकी भी कहा गया है.....अब उद्यानों में इसे शोभाकारी पौधे के रूप में भी लगाने लगे है....।।। चाहे इसका उपयोग हमने आज बन्द कर दिया पर इसकी उपयोगिता अब भी महत्वपूर्ण हैं... रामबांस प्राकृतिक रेशा प्रदान करने वाली फसल के रूप में उभर रही है... इसकी पत्तियों से उच्च गुणवत्ता युक्त मजबूत और चमकीला प्राकृतिक रेशा प्राप्त होता है....विश्व में रेशा प्रदान करने वाली प्रमुख फसलों में सिसल का छटवाँ स्थान है और पौध रेशा उत्पादन में दो प्रतिश

स्टीविया के पत्तियों में चीनी से 40 गुना अधिक मिठास होता है पर यह डायबिटीज के मरीजों के लिए एक औषधि के समान कार्य करता है।

स्टीविया के पत्तियों में चीनी से 40 गुना अधिक मिठास होता है पर यह डायबिटीज के मरीजों के लिए एक औषधि के समान कार्य करता है। ■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ एक एकड़ की खेती से पांच लाख की आमदनी। #स्‍टीविया (Stevia) एक प्राकृतिक और औषधीय गुणों वाला पौधा है। स्‍टीविया के फायदे प्राकृतिक स्‍वीटनर के लिए जाने जाते हैं। स्‍टीविया के गुण विभिन्‍न प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य समस्याओं को दूर करने के लिए जाने जाते हैं। स्‍टीविया के स्‍वास्‍थ्‍य लाभों में मधुमेह को नियंत्रित करना तो है ही साथ में यह वजन को कम करने में सहायक होते हैं। स्‍टीविया के बीज रक्‍तचाप नियंत्रण और कैंसर की रोकथाम में फायदेमंद होते हैं। स्‍टेविया पाउडर के लाभ त्‍वचा समस्‍याओं, एलर्जी का इलाज और हड्डी स्‍वास्‍थ्‍य आदि शामिल हैं। ये सभी लाभ इस औषधीय पौधे में मौजूद पोषक तत्‍वों के कारण होते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह चीनी से कई गुना मीठा होने के बावजूद मधुमेह के रोगियों के लिए जहर नहीं, बल्कि वरदान माना जाता है. ऐसा इसलिए माना जाता है, क्योंकि इसमें चीनी की तरह चर्बी और कैलोरी नहीं होती है. इसकी मीठी पत्तियां मधुमेह से पीड़ित

कृषि तकनीक:-मूंग की वैज्ञानिक विधि से खेती

  कृषि तकनीक:- मूंग की वैज्ञानिक विधि से खेती भारत में मूंग की खेती लगभग 4.5-4.6 मिलियन हेक्टर क्षेत्रफल में की जाती है और सालाना लगभग 2.5 मिलियन टन उत्पादन होता है। मूंग के दानों में लगभग 23-24 प्रतिशत प्रोटीन तथा कैल्शियम, आयरन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन की मात्रा होती है। इसका उपयोग दाल के अलावा नमकीन, पापड़ एवं मिठाइयां बनाने में भी होता है। मूंग की फसल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का मृदा में स्थिरीकरण करती है। इसके फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से पोषक तत्वों एवं कार्बन, नमी संरक्षण, मृदा की जैविक क्रियाशीलता एवं वायु संचार में वृद्धि और जल प्रवाह व मृदाक्षरण में कमी होती है। देश में मूंग की ग्रीष्मकालीन खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। किसान इसकी खेती में उचित कृषि तकनीकों जैसे कम अवधि वाली किस्मों का चयन, सिंचाई जल का उत्तम प्रबंधन, खरपतवार, रोग और कीट प्रबंधन इत्यादि के बारे में अच्छी जानकारी द्वारा उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। इस लेख में मूंग फसल की महत्वपूर्ण कृषि क्रियाओं का वर्णन किया गया है। जलवायु एवं उन्नत किस्में फसल वृद्धि के लिए इष्टतम तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस होता