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Showing posts from March, 2023

हजारों साल पुराना है, रागी फसल का इतिहास, खेती से मिलेगा जेन्जरा के किसान मेघावी साहू को धान की अपेक्षा दुगना मुनाफा।

हजारों साल पुराना है, रागी फसल का इतिहास, खेती से मिलेगा जेन्जरा के किसान मेघावी साहू को धान की अपेक्षा दुगना मुनाफा। रागी को कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल माना जाता है. इसमें प्रोटीन की मात्रा ज्यादा है, अमीनो एसिड, कैल्शियम, पौटेशियम की मात्रा रागी भी काफी पाई जाती है. कम हीमोग्लोबिन वाले व्यक्ति के लिए रागी का सेवन करना बेहद फायदेमंद है। खेती-किसानी में मुनाफे वाली फसलों की खेती करने के लिए किसानों को राज्य शासन एवं केंद्र शासन द्वारा लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। इन्हीं में से लघु धान्य फसल रागी एक ऐसी फसल हैं, जिनका हजारों साल पुराना इतिहास हैं।  माना जाता है कि इसकी खेती भारत में 4 हजार साल पहले शुरू हुई थी।इस फसल की बुवाई की सबसे पहले अफ्रीका में हुई थी।  हमारे पूर्वज इसकी खेती करते थे बीच मे कृषकों का रुझान धान/गेंहू की फसलों पर गया और लघु धान्य वाली फसल रागी खेत से व भोजन की थाली से गायब हो गयी। परंतु अब शासन के लगातार प्रचार प्रसार के कारण कृषको ने अपने खेतों में रागी को स्थान देना शुरू कर दिया है। ग्राम जेन्जरा विकासखंड फिंगेश्वर जिला गरियाबंद के कृषक मेधावी सा

आमा हल्दी -बहुत गुणकारी है आमा हल्दी

आमा हल्दी - बहुत गुणकारी है आमा हल्दी   Botanical Name:-  Curcuma amada Roxb.  Family :- Zingiberaceae  अंग्रेज़ी नाम : Mango ginger (मैंगो जिंजर)  हिन्दी-आमा हलदी,  परिचय भारत के समस्त प्रान्तों में इसकी खेती की जाती है। इसके गाँठे आम की तरह गन्धयुक्त होती हैं इसलिए इसे आमा हल्दी कहते हैं। लोग इसकी गाँठों के छोटे-छोटे टुकड़े करके सुखा लेते हैं। प्राय बाजार में आमा हल्दी के नाम से वन्यहरिद्रा की गाँठें बिकती हैं। इसका उपयोग हलदी के स्थान पर किया जाता है। सुगन्धित होने के कारण इसे चटनी आदि में प्रयोग किया जाता है। मिठाईयों में आम की गन्ध लाने के लिए इसके फाण्ट का उपयोग किया जाता है। इसके प्रकन्द बृहत्, स्थूल, बेलनाकार अथवा दीर्घवृत्ताकार, शाखा-प्रशाखायुक्त होते हैं। आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव प्रकन्द अजीर्ण, जीर्ण व्रण, त्वक् रोग, श्वासनलिका शोथ, वातरक्त, विबन्ध, अतिसार, जीर्ण पूयमेह, कटिशूल, मुखरोग तथा कर्णरोग में हितकर है। यह वातानुलोमक, शीतल, सुगन्धित, दीपन एवं पाचक है। औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि दंतशूल-अकारकरभ, तुत्थ, अफीम तथा आम्रंधी हरिद्रा के चूर्ण से दाँतों का मर्दन करने स

मिलेट्स:- कोदो स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है।

मिलेट्स:- कोदो स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है। महज 50 साल पहले हमारा फूड कल्चर बिल्कुल अलग था ।हम सभी मोटे अनाज खाने वाले लोग थे। हरित क्रांति के उपरांत हम सभी ने चावल और गेहूं को इस कदर अपनाया कि हमारी थाली से मोटे अनाज गायब हो गए।  छत्तीसगढ़ में 50 साल पहले इसकी खेती वृहत स्तर पर की जाती थी परंतु दिन ब दिन इसकी घटती मांग से कोदो की खेती का रकबा काफी कम होता चला गया। परन्तु हाल के दिनों में पौष्टिकता से भरपूर ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), सवां, कोदों और इसी तरह के अन्य मोटे अनाजों वैश्विक बाजार में डिमांड बढ़ने लगी है। हम सभी लोगों को इन मोटे अनाजों के बारे में जन-जन तक जानकारी पहुंचानी चाहिए। #कोदो कोदो एक मोटा अनाज है जो कम वर्षा में भी पैदा हो जाता है। नेपाल व भारत के विभिन्न भागों में इसकी खेती की जाती है। धान आदि के कारण इसकी खेती अब कम होती जा रही है। इसका पौधा धान या बडी़ घास के आकार का होता है। इसकी फसल पहली बर्षा होते ही बो दी जाती है और भादों में तैयार हो जाती है। इसके लिये बढि़या भूमि या अधिक परिश्रम की आवश्यकता नहीं होती।  अधिक पकने पर इसके दाने झड़कर खेत में गिर जाते हैं, इ

मेंथा की खेती कर देगी किसानों को मालामाल

मेंथा की खेती कर देगी किसानों को मालामाल स्वाद भरे इस देश में भला पिपरमेंट को कैसे भुला जा सकता है वो बचपन की ठंडी ठंडी टोफियाँ जिसका स्वाद आज भी जुबान पर है। पर क्या जानते हैं ये टेस्ट आता कहा से था? पिपरमेंट की खेती कैसे करें और क्यों करें व कितना लाभ कमाया जा सकता है। जैसा की हमें पता है भारत एक कृषि प्रधान देश है आज भी 70 से ज़्यादा प्रतिशत लोग किसी ना किसी रूप में कृषि से जुड़े हैं। आज हम बात कर रहे हैं पिपरमेंट की खेती की जिसने न सिर्फ खेती के मायनों को बदला बल्कि जिसने किसानो का क़र्ज़ ख़त्म करके उन्हें इस काबिल बना दिया है कि वो आज अपनी हर पसंदीदा चीजों को करने में बिलकुल नहीं कतराते। पिपरमेंट से बनने वाली वस्तुए इसका इस्तेमाल दवाएं, सौंदर्य उत्पाद, टूथपेस्ट के साथ ही कंफ्केशनरी उत्पादों में होता है। टेस्ट के लिए: टेस्टी टाफी, पान, साबुन, ठंडा तेल, टूथ पेस्ट आदि से लेकर विभिन्न औषधीय निर्माण में इसका उपयोग किया जाता है। #संक्रमण को दूर करने में सहायक: त्वचा पर हो रही लगातार खुजली से छुटकारा पाने के लिए आप पेट्रोलियम जैली के बजाए पिपरमेंट के तेल का उपयोग करें, क्योंकि इससे होने

कटहल के फल काले होकर सड़ रहे है क्या करे?

कटहल के फल काले होकर सड़ रहे है क्या करे? कटहल को विश्व का सबसे बड़ा फल भी कहते हैं। इसका पूर्ण विकसित पौधा कई वर्षो तक पैदावार देता है। इसके पके हुए फल को ऐसे भी खाया जा सकता है। किन्तु विशेषकर इसे सब्जी के रूप में खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए इसे फल और सब्जी दोनों ही कह सकते हैं। कटहल की ऊपरी परत पर छोटे-छोटे काटे लगे होते हैं। कटहल में कई तरह के पोषक तत्व जैसे:- आयरन, कैल्शियम, विटामिन ए, सी, और पौटेशियम बड़ी मात्रा में भी पाए जाते हैं, जो कि मानव शरीर के लिए लाभदायक भी हैं। एक वर्ष में कटहल के पेड़ से दो बार फलों को प्राप्त किया जा सकता है। इस लिहाज से कटहल की खेती किसानों के लिए आय की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी खेती से किसानों को बहुत अच्छा मुनाफा होता है। कटहल कच्चा हो या पका हुआ, इसको दोनों प्रकार से उपयोगी माना जाता है, इसलिए बाजार में इसकी मांग ज्यादा होती है।      जिन किसानों के घर पर कटहल का पेड़ है वह इस रोग से भलीभांति  परिचित है कटहल पर लगने वाली इस बीमारी से अधिकांश किसान परेशान होते है  इस रोग का रोगकारक एक कवक है जिसे राइजोपस स्टोलोनिफर कहते ह

गरियाबंद : मूंगफली की उन्नत खेती से बढ़ रही है किसानों की आय

  गरियाबंद : मूंगफली की उन्नत खेती से बढ़ रही है किसानों की आय जिले में फसल परिवर्तन के तहत किसान अब मूंगफली की खेती कर अच्छी आमदनी अर्जित कर रहे हैं। गतवर्ष 2021-22 में कृषि विभाग के टरफा योजनांतर्गत विकासखण्ड फिंगेश्वर के ग्राम रोबा में मूंगफली फसल प्रदर्शन आयोजित किया गया था। जिसमें ग्राम रोबा के 14 किसानों को सामूहिक रूप से मूंगफली की उन्नत किस्म धारणी का बीज दिया गया था।  जिसमें कृषक नेहरू साहू पिता स्व. बुधराम साहू भी शामिल था। नेहरू ने अपने 1 एकड़ में कृषि भूमि में कृषि विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन में मूंगफली की खेती की। नेहरू को बीज व आदान सामग्री कार्यालय वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी विकासखण्ड- फिंगेश्वर से प्राप्त हुआ। कृषि विभाग द्वारा कृषक को बीजोत्पादन कार्यक्रम के तहत् छ.ग. राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था जिला गरियाबंद में पंजीयन कराया गया।  कृषक नेहरू ने बीज निगम में अपने उत्पादित मूंगफली को 6500 रुपये प्रति क्विंटल दर पर विक्रय कर समर्थन मूल्य से अतिरिक्त राशि 650 रुपये प्रति क्विंटल की आमदनी हासिल की। कृषक नेहरू साहू ने 52 हजार रूपये के मूंगफली विक्रय किया है।  कृषक नेहरू

उद्यानिकी- अमरूद में उच्च गुणवत्ता युक्त ज्यादा फलन लेने समय पर करें बहार नियंत्रण

उद्यानिकी- अमरूद में उच्च गुणवत्ता युक्त ज्यादा फलन लेने समय पर करें बहार नियंत्रण। अमरूद/बिही/जाम/Guava में साल में तीन बार फूल एवं फल आते है जिनको बहार कहते हैं। इस तरह अमरूद में तीन बहार आती है मृग बहार, अम्बे बहार एवं हस्त बहार। ■अम्बे बहार – इसमें फरवरी-मार्च माह में फूल आते हैं एवं बारिश के मौसम में फल लगते हैं। बारिश के कारण इस मौसम की फसल के फल कम मीठे होते है एवं इनकी गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती है, कीड़े बीमारियों का प्रकोप ज्यादा होने से किसानों को आर्थिक रूप से कम लाभ होता है। ■हस्त बहार – इस बहार में अक्टूबर – नवम्बर माह में में फूल आते है एवं फरवरी-अप्रैल में फल आते है, इस मौसम के फलो की गुणवत्ता अच्छी होती है लेकिन उपज कम आती है। ■मृग बहार – इस बहार में जून – जुलाई माह में फूल आते है एवं नवम्बर-जनवरी  में फल आते हैं। मृग बहार के फलों की गुणवत्ता, स्वाद एवं उपज अच्छी होती है। यदि अमरूद के पेड़ पर तीनों बार फल लिए जाए तो उत्पादन कम होता है एवं फलों की गुणवत्ता भी कम होती है। अतः अमरुद के फलों में ज्यादा उत्पादन एवं अच्छी गुणवत्ता के फलों के उत्पादन के लिए साल में सिर्फ एक बा