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Showing posts from January, 2022

मिर्च में चुरड़ा-मुरड़ा रोग से पाएं मुक्ति 🐛

🌶️मिर्च में  चुरड़ा-मुरड़ा रोग से पाएं मुक्ति 🐛 इस समय मिर्च की फसल नर्सरी, वृद्धि विकास, पुष्पन एवं फल अवस्था पर है और इस समय मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ वायरस देखा जा रहा है। इसके सम्पूर्ण नियंत्रण के लिए इस लेख को ध्यान पूर्वक पढ़ें। 👉🏻 किसान भाइयों मिर्च के पौधों में चुरड़ा मुरड़ा रोग एक भयंकर रोग है। इसके नियंत्रण के लिए यह रोग विषाणु के कारण होता है। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियां छोटी होकर मुड जाती हैं तथा पौधा बौना हो जाता है। यह रोग सफेद मक्खी कीट के कारण एक पौधे से दूसरे पौधे पर फैलता है। 👉🏻 नर्सरी में रोगी पौधों को समय-समय पर हटाते रहे। तथा स्वस्थ पौधौं का ही रोपण करें। 👉🏻 हमेशा दवाओं का अदल - बदल कर छिड़काव करें। 👉🏻 रोग ग्रसित पौधों को उखाड कर मिट्टी में दफ़न कर दें या जला दें। 👉🏻 मिर्च फसल की समय समय पर निगरानी करें। 👉🏻 मिर्च की फसल में खरपतवारों का समय समय पर नियंत्रण करें। 👉🏻 सफ़ेद मक्खी के रासायनिक नियंत्रण हेतू पायरीप्रॉक्सीफेन 10% ईसी @ 200 मिली प्रति 120 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। या फेनप्रोपथ्रीन 30% ईसी @ 100 - 136 मिली 300 से 400 पानी में

कृषि:- मक्के की उन्नत खेती से बदल जाएगी किसानों की तकदीर

   कृषि:- मक्के की उन्नत खेती से बदल जाएगी किसानों की तकदीर मक्का, एक प्रमुख खाद्य फसल हैं, जो मोटे अनाजो की श्रेणी में आता है। इसे भुट्टे की शक्ल में भी खाया जाता है भारत के अधिकांश मैदानी भागों से लेकर २७०० मीटर उँचाई वाले पहाडी क्षेत्रो तक मक्का सफलतापूर्वक उगाया जाता है। इसे सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है तथा बलुई, दोमट मिट्टी मक्का की खेती के लिये बेहतर समझी जाती है। मक्का खरीफ ऋतु की फसल है, परन्तु जहां सिचाई के साधन हैं वहां रबी और खरीफ की अगेती फसल के रूप मे ली जा सकती है। मक्का कार्बोहाइड्रेट का बहुत अच्छा स्रोत है। यह एक बहपयोगी फसल है व मनुष्य के साथ- साथ पशुओं के आहार का प्रमुख अवयव भी है तथा औद्योगिक दृष्टिकोण से इसका महत्वपूर्ण स्थान भी है। चपाती के रूप मे, भुट्टे सेंककर, मधु मक्का को उबालकर कॉर्नफलेक्स, पॉपकार्न, लइया के रूप मे आदि के साथ-साथ अब मक्का का उपयोग कार्ड आइल, बायोफयूल के लिए भी होने लगा है। लगभग 65 प्रतिशत मक्का का उपयोग मुर्गी एवं पशु आहार के रूप मे किया जाता है। साथ ही साथ इससे पौष्टिक रूचिकर चारा प्राप्त होता है। भुट्टे काटने के बाद बची हुई क

उद्यानिकी-छत्तीसगढ़ के अरविंद जायसवाल ने 3.5 एकड़ में टमाटर खेती से 22 लाख रुपए का मुनाफा कमाया

  छत्तीसगढ़ के अरविंद जायसवाल ने 3.5 एकड़ में टमाटर खेती से 22 लाख रुपए का मुनाफा कमाया अधिकांशतः कृषि कार्य का जिम्मा हमारे देश और प्रदेश के ग्रामो में निवास करने वाले किसान भाइयों के पास है। लेकिन बीते कुछ दशक से कई युवा अपनी पढ़ाई कर खेती और किसानी की तरफ अपना रुझान दिखा रहे है। आज की कड़ी में हम ऐसे ही एक युवा किसान के बारे में बात करेंगे जिनका नाम है  "अरविंद जायसवाल" छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिला के देहानडीह गांव में रहने वाले अरविंद जायसवाल ने पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है पढ़ाई के बाद इनका रुझान खेती की ओर था शहर में पढ़ाई करने के बाद अरविंद ने अपने गांव जाकर खेती करना शुरू किया नवीन कृषि उद्यमी एवं युवा किसान है जो वर्तमान देश प्रदेश में कोरोना महामारी के बीच अपना कृषि उद्यमी एवं कृषि की की ओर अपना ध्यान आकर्षित करके खेती को ही व्यवसाय बनाकर व्यवसाय करने का सोचा । अरविंद ने सर्वप्रथम 3.5 एकड़ बंजर जमीन जो कुम्हार दनिया गांव में है उसको खेती योग्य भूमि में बदल कर उसमें ट्यूबेल एवम फेंसिंग कराया फिर उस खुद से टमाटर के पौधे का नर्सरी 12 जून से तैयारी शुरू किया एवं फील्ड तैया

मकोय-औषधीय गुणों से परिपूर्ण मकोय की नई किस्म विकसित की इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिको ने।

मकोय-औषधीय गुणों से परिपूर्ण मकोय की नई किस्म विकसित की इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वैज्ञानिको ने। आंवले जैसे रसभरी प्रोटीन और विटामिन सी से परिपूर्ण अगर आप ग्रामीण जन-जीवन से सम्बंधित है तो मकोय आपके लिए कोई नया नाम नही है इसे रसभरी भी कहते है आपने बचपन मे इसका खूब आनंद लिया ही होगा। छत्तीसगढ़ अंचल में मकोय खेतो में सीखने को मिल जाती है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण मकोय (रसभरी) अब आंवले के आकार की भी मिलेगी। इसका वजन 25 ग्राम तक होगा। खट्टे -मीठे और रसीले स्वाद की मकोय की इस नई किस्म का नाम सीजी कैप गूजबेरी-1 रखा गया है। इसके पौधे को घर की छत और आंगन सागबाड़ी (किचन गार्डन) में भी लगा सकेंगे। इस मकोय में 40 फीसद प्रोटीन, 15 फीसद कैल्शियम, 10 फीसद विटामिन सी और बाकी 35 फीसद फाइबर, कार्बोहाईड्रेड आदि हैं। आकार और गुणों से भरपूर मकोय की यह अपनी तरह की पहली किस्म है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछले दिनों इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के दौरे पर पहुंचे तो यह कहते हुए चहक उठे कि बचपन में तो छोटे-छोटे मकोय खाये थे। यह तो आंवले जैसा बड़ा हो गया है। डॉ. धनश्याम साहू कृषि वैज्ञानिक विवि के

जैविक खेती-बरगद के तले मिट्‌टी में हैं ढेरों पोषक तत्व

  जैविक खेती-बरगद के तले मिट्‌टी में हैं ढेरों पोषक तत्व बरगद का पेड़ मानव जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है ये तो आप जानते है मानवों के लिए ऑक्सीजन की फैक्ट्री है बरगद का पेड़ परन्तु शायद ही आपको पता होगा कि बरगद के पेड़ की नीचे की मिट्टी में ऐसे ऐसे सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते है जिसका प्रयोग यदि खेत मे करे तो फसल लहलहा उठेगी। आइए आज की कड़ी में इन्हीं गुणों के बारे में जानने का प्रयास करते है। मिलते है 13 सूक्ष्म जीव बरगद के पेेेड़ के नीचे के मिट्टी में कुल 13 सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं जो खेती के लिए काफी लाभदायक हैं।1.अजोटोवेक्टर,  2.बैसिलस,  3.अजोसपीरल्म, 4.सुडोमोनास,  5.नाइट्रोजन  6.फिक्सर,  7.पेनिसिलियान, 8.एसपरजीलस,  9.ब्ल्यू ग्रीन एल्गीएसीट, 10.फंगस, 11. मोल्डस  12.प्रोटोजोआ, 13. एकटीनोमाइसटीज आदि पाए जाते हैं। जानिए कब कब निकाल सकते है बरगद पेड़ के नीचे की मिट्टी बरगद पेड़ के नीचे की मिट्टी एक उतम जैविक खाद है। यह मिट्टी फसल के लिए गुणकारी है और इसे पेड़ के नीचे से 6 महीने में एक बार निकाल कर फसल में प्रयोग कर सकते हैं । जानिए क्या- क्या है लाभ ■इससे पैदावार की बढ़ोतरी, अच्छी गुणवत्ता,